1 हे निर्बुद्धि गलतियों, किस ने तुम्हें मोह लिया तुम्हारी तो मानोंआंखोंके साम्हने यीशु मसीह क्रूस पर दिखाया गया!
2 मैं तुम से केवल यह जानना चाहता हूं, कि तुम ने आत्क़ा को, क्या व्यवस्या के कामोंसे, या विश्वास के समाचार से पाया
3 क्या तुम ऐसे निर्बुद्धि हो, कि आत्क़ा की रीति पर आरम्भ करके अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे
4 क्या तुम ने इतना दुख योंही उठाया परन्तु कदाचित व्यर्य नहीं।
5 सो जो तुम्हें आत्क़ा दान करता और तुम में सामर्य के काम करता है, वह क्या व्यवस्या के कामोंसे या विश्वास के सुसमाचार से ऐसा करता है
6 इब्राहीम ने तो परमेश्वर पर विश्वास किया और यह उसके लिथे धामिर्कता गिनी गई।
7 तो यह जान लो, कि जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही इब्राहीम की सन्तान हैं।
8 और पवित्रशास्त्र ने पहिले ही से यह जानकर, कि परमेश्वर अन्यजातियोंको विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहिले हीे से इब्राहीम को यह सुसमाचार सुना दिया, कि तुझ में सब जातियां आशीष पाएंगी।
9 तो जो विश्वास करनेवाले हैं, वे विश्वासी इब्राहीम के साय आशीष पाते हैं।
10 सो जितने लोग व्यवस्या के कामोंपर भरोसा रखते हैं, वे सब स्त्राप के आधीन हैं, क्योंकि लिखा है, कि जो कोई व्यवस्या की पुस्तक में लिखी हुई सब बातोंके करने में स्यिर नहीं रहता, वह स्त्रापित है।
11 पर यह बात प्रगट है, कि व्यवस्या के द्वारा परमेश्वर के यहां कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा।
12 पर व्यवस्या का विश्वास से कुछ सम्बन्ध नहीं; पर जो उन को मानेगा, वह उन के कारण जीवित रहेगा।
13 मसीह ने जो हमारे लिथे स्त्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्या के स्त्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह स्त्रापित है।
14 यह इसलिथे हुआ, कि इब्राहिम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियोंतक पंहुचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्क़ा को प्राप्त करें, जिस की प्रतिज्ञा हुई है।।
15 हे भाइयों, मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूं, कि मनुष्य की वाचा भी जो पक्की हो जाती है, तो न कोई उसे टालता है और न उस में कुछ बढ़ाता है।
16 निदान, प्रतिज्ञाएं इब्राहीम को, और उसके वंश को दी गईं; वह यह नहीं कहता, कि वशोंको; जेसे बहुतोंके विषय में कहा, पर जैसे एक के विषय में कि तेरे वंश को: और वह मसीह है।
17 पर मैं यह कहता हूं की जो वाचा परमेश्वर ने पहिले से पक्की की यी, उस को व्यवस्या चार सौ तीस बरस के बाद आकर नहीं टाल देती, कि प्रतिज्ञा व्यर्य ठहरे।
18 क्योंकि यदि मीरास व्यवस्या से मिली है, तो फिर प्रतिज्ञा से नहीं, परन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम को प्रतिज्ञा के द्वारा दे दी है।
19 तब फिर व्यवस्या क्या रही वह तो अपराधोंके कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई यी, और वह स्वर्गदूतोंके द्वारा एक मध्यस्य के हाथ ठहराई गई।
20 मध्यस्य तो एक का नहीं होता, परन्तु परमेश्वर एक ही है।
21 तो क्या व्यवस्या परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है कदापि न हो क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्या दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्या से होती।
22 परन्तु पवित्र शास्त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करनेवालोंके लिथे पूरी हो जाए।।
23 पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्या की अधीनता में हमारी रखवाली होती यी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होनेवाला या, हम उसी के बन्धन में रहे।
24 इसलिथे व्यवस्या मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिझक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।
25 परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिझक के आधीन न रहे।
26 क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो।
27 और तुम में से जितनोंने मसीह में बपतिस्क़ा लिया है उन्होंने मसीह को पहिन लिया है।
28 अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।
29 और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।।