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मलाकी - Chapter 3

1 देखो, मैं अपके दूत को भेजता हूं, और वह मार्ग को मेरे आगे सुधारेगा, और प्रभु, जिसे तुम ढूंढ़ते हो, वह अचानक अपके मन्दिर में आ जाएगा; हां वाचा का वह दूत, जिसे तुम चाहते हो, सुनो, वह आता है, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। 
2 परन्तु उसके आने के दिन की कौन सह सकेगा? और जब वह दिखाई दे, तब कौन खड़ा रह सकेगा? क्योंकि वह सोनार की आग और धोबी के साबुन के समान है। 
3 वह रूपे का तानेवाला और शुद्ध करनेवाला बनेगा, और लेवियोंको शुद्ध करेगा और उनको सोने रूपे की नाईं निर्मल करेगा, तब वे यहोवा की भेंट धर्म से चढ़ाएंगे। 
4 तब यहूदा और यरूशलेम की भेंट यहोवा को ऐसी भाएगी, जैसी पहिले दिनोंमें और प्राचीनकाल में भावती यी।। 
5 तब मैं न्याय करने को तुम्हारे निकट आऊंगा; और टोन्हों, और व्यभिचारियों, और फूठी किरिया खानेवालोंके विरूद्ध, और जो मजदूर की मजदूरी को दबाते, और विधवा और अनायोंपर अन्धेर करते, और परदेशी का न्याय बिगाड़ते, और मेरा भय नहीं मानते, उन सभोंके विरूद्ध मैं तुरन्त साझी दूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।। 
6 क्योंकि मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याकूब की सन्तान तुम नाश नहीं हुए। 
7 अपके पुरखाओं के दिनोंसे तुम लोग मेरी विधियोंसे हटते आए हो, ओर उनका पालन नहीं करते। तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है; परन्तु तुम पूछते हो, हम किस बात में फिरें? 
8 क्या मनुष्य परमेश्वर को धोखा दे सकता है? देखो, तुम मुझ को धोखा देते हो, और तौभी पूछते हो कि हम ने किस बात में तुझे लूटा है? दशमांश और उठाने की भेंटोंमें। 
9 तुम पर भारी शाप पड़ा है, क्योंकि तुम मुझे लूटते हो; वरन सारी जाति ऐसा करती है। 
10 सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्तु रहे; और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के फरोखे तुम्हारे लिथे खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं। 
11 मैं तुम्हारे लिथे नाश करनेवाले को ऐसा घुड़कूंगा कि वह तुम्हारी भूमि की उपज नाश न करेगा, और तुम्हारी दाखलताओं के फल कच्चे न गिरेंगे, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।। 
12 तब सारी जातियां तुम को धन्य कहेंगी, क्योंकि तुम्हारा देश मनोहर देश होगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।। 
13 यहोवा यह कहता है, तुम ने मेरे विरूद्ध ढिठाई की बातें कही हैं। परन्तु तुम पूछते हो, हम ने तेरे विरूद्ध में क्या कहा है? 
14 तुम ने कहा है कि परमेश्वर की सेवा करनी व्यर्य है। हम ने जो उसके बताए हुए कामोंको पूरा किया और सेनाओं के यहोवा के डर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए चले हैं, इस से क्या लाभ हुआ? 
15 अब से हम अभिमानी लोगोंको धन्य कहते हैं; क्योंकि दुराचारी तो सफल बन गए हैं, वरन वे परमेश्वर की पक्कीझा करने पर भी बच गए हैं।। 
16 तब यहोवा का भय माननेवालोंने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता या; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती यी। 
17 सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि जो दिन मैं ने ठहराया है, उस दिन वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मै उन से ऐसी कोमलता करूंगा जैसी कोई अपके सेवा करनेवाले पुत्र से करे। 
18 तब तुम फिरकर धर्मी और दुष्ट का भेद, अर्यात्‌ जो परमेश्वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनोंको भेद पहिचान सकोगे।।