1 वह फिर फील के किनारे उपकेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह फील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और सारी भीड़ भूमि पर फील के किनारे खड़ी रही।
2 और वह उन्हें दृष्टान्तोंमें बहुत सी बातें सिखाने लगो, और अपके उपकेश में उन से कहा।
3 सुनो: देखो, एक बोनेवाला, बीज बाने के लिथे निकला!
4 और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पझियोंने आकर उसे चुग लिया।
5 और कुछ पत्यरीली भूमि पर गिरा जहां उस की बहुत मिट्टी न मिली, और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण जल्द उग आया।
6 और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया।
7 और कुछ तो फाडिय़ोंमें गिरा, और फाडिय़ोंने बढ़कर उसे दबा लिया, और वह फल न लाया।
8 परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया।
9 और उस ने कहा; जिस के पास सुनने के लिथे कान होंवह सुन ले।।
10 जब वह अकेला रह गया, तो उसके सायियोंने उन बारह समेत उस से इन दृष्टान्तोंके विषय में पूछा।
11 उस ने उन से कहा, तुम को तो परमेश्वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहरवालोंके लिथे सब बातें दृष्टान्तोंमें होती हैं।
12 इसलिथे कि वे देखते हुए देखें और उन्हें सुफाई न पके और सुनते हुए सुनें भी और न समझें; ऐसा न हो कि वे फिरें, और झमा किए जाएं।
13 फिर उस ने उन से कहा; क्या तुम यह दृष्टान्त नहीं समझते तो फिर और सब दृष्टान्तोंको क्योंकर समझोगे
14 बानेवाला वचन बोता है।
15 जो मार्ग के किनारे के हैं जहां वचन बोया जाता है, थे वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उन में बोया गया या, उठा ले जाता है।
16 और वैसे ही जो पत्यरीली भूमि पर बोए जाते हैं, थे वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं।
17 परन्तु अपके भीतर जड़ न रखते के कारण वे योड़े भी दिनोंके लिथे रहते हैं; इस के बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं।
18 और जो फाडियोंमें बोए गए थे वे हैं जिन्होंने वचन सुना।
19 और संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और और वस्तुओं का लोभ उन में समाकर वचन को दबा देता है। और वह निष्फल रह जाता है।
20 और जो अच्छी भूमि में बोए गए, थे वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा।।
21 और उस ने उन से कहा; क्या दिथे को इसलिथे लाते हैं कि पैमाने या खाट के निचे रखा जाए क्या इसलिथे नहीं, कि दीवट पर रखा जाए
22 क्योंकि कोई वस्तु छिपी नहीं, परन्तु इसलिथे कि प्रगट हो जाए;
23 और न कुछ गुप्त है पर इसलिथे कि प्रगट हो जाए। यदि किसी के सुनने के कान हों, तो सुन ले।
24 फिर उस ने उन से कहा; चौकस रहो, कि क्या सुनते हो जिस नाप से तुम नापके हो उसी से तुम्हारे लिथे भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिय जाएगा।
25 क्योंकि जिस के पास है, उस को दिया जाएगा; परन्तु जिस के पास नहीं है उस से वह भी जो उसके पास है; ले लिया जाएगा।।
26 फिर उस ने कहा; परमेश्वर का राजय ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे।
27 और रात को सोए, और दिन को जागे और वह बीच ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने।
28 पृय्वी आप से आप फल लाती है पलिे अंकुर, तब बाल, और तब बालोंमें तैयार दाना।
29 परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हंसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुंची है।।
30 फिर उस ने कहा, हम परमेश्वर के राज्य की उपमा किस से दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें
31 वह राई के दाने के समान हैं; कि जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजोंसे छोटा होता है।
32 परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब साग पात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियां निकलती हैं, कि आकाश के पक्की उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।।
33 और वह उन्हें इस प्रकार के बहुत से दृष्टान्त दे देकर उन की समझ के अनुसार वचन सुनाता या।
34 और बिना दृष्टान्त कहे उन से कुछ भी नहीं कहता या; परन्तु एकान्त में वह अपके निज चेलोंको सब बातोंका अर्य बताता या।।
35 उसी दिन जब सांफ हुई, तो उस ने उन से कहा; आओ, हम पार चलें,।
36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह या, वैसा की उसे नाव पर साय ले चले; और उसके साय, और भी नावें यीं।
37 तब बड़ी आन्धी आई, और लहरें नाव पर यहां तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती यी।
38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा या; तब उन्होंने उसे जगाकर उस से कहा; हे गुरू, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं
39 तब उस ने उठकर आन्धी को डांटा, और पानी से कहा; ?शान्त रह, यम जा : और आन्धी यम गई और बड़ा चैन हो गया।
40 और उन से कहा; तुम क्योंडरते हो क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं
41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले; यह कौन है, कि आन्धी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं