1 जो निर्धन खराई से चलता है, वह उस मूर्ख से उत्तम है जो टेढ़ी बातें बोलता है।
2 मनुष्य का ज्ञानरहित रहना अच्छा नहीं, और जो उतावली से दौड़ता है वह चूक जाता है।
3 मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।
4 धनी के तो बहुत मित्र हो जाते हैं, परन्तु कंगाल के मित्र उस से अलग हो जाते हैं।
5 फूठा साझी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो फूठ बोला करता है, वह न बचेगा।
6 उदार मनुष्य को बहुत से लोग मना लेते हैं, और दानी पुरूष का मित्र सब कोई बनता है।
7 जब निर्धन के सब भाई उस से बैर रखते हैं, तो निश्चय है कि उसके मित्र उस से दूर हो जाएं। वह बातें करते हुए उनका पीछा करता है, परन्तु उनको नहीं पाता।
8 जो बुद्धि प्राप्त करता, वह अपके प्राण को प्रेमी ठहरता है; और जो समझ को धरे रहता है उसका कल्याण होता है।
9 फूठा साझी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो फूठ बोला करता है, वह नाश होता है।
10 जब सुख में रहना मूर्ख को नहीं फबता, तो हाकिमोंपर दास का प्रभुता करना कैसे फबे!
11 जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को फुलाना उसको सोहता है।
12 राजा का क्रोध सिंह की गरजन के समान है, परन्तु उसकी प्रसन्नता घास पर की ओस के तुल्य होती है।
13 मूर्ख पुत्र पिता के लिथे विपत्ति ठहरता है, और पत्नी के फगड़े-रगड़े सदा टपकने के समान है।
14 घर और धन पुरखाओं के भाग में, परन्तु बुद्धिमती पत्नी यहोवा ही से मिलती है।
15 आलस से भारी नींद आ जाती है, और जो प्राणी ढिलाई से काम करता, वह भूखा ही रहता है।
16 जो आज्ञा को मानता, वह अपके प्राण की रझा करता है, परन्तु जो अपके चालचलन के विषय में निश्चिन्त रहता है, वह मर जाता है।
17 जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपके इस काम का प्रतिफल पाएगा।
18 जबतक आशा है तो अपके पुत्र को ताड़ना कर, जान बूफकर उसका मार न डाल।
19 जो बड़ा क्रोधी है, उसे दण्ड उठाने दे; क्योंकि यदि तू उसे बचाए, तो बारम्बार बचाना पकेगा।
20 सम्मति को सुन ले, और शिझा को ग्रहण कर, कि तू अन्तकाल में बुद्धिमान ठहरे।
21 मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएं होती हैं, परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्यिर रहती है।
22 मनुष्य कृपा करने के अनुसार चाहने योग्य होता है, और निर्धन जन फूठ बोलनेवाले से उत्तम है।
23 यहोवा का भय मानने से जीवन बढ़ता है; और उसका भय माननेवाला ठिकाना पाकर सुखी रहता है; उस पर विपत्ती नहीं पड़ने की।
24 आलसी अपना हाथ याली में डालता है, परन्तु अपके मुंह तक कौर नहीं उठाता।
25 ठट्ठा करनेवाले को मार, इस से भोला मनुष्य समझदार हो जाएगा; और समझवाले को डांट, तब वह अधिक ज्ञान पाएगा।
26 जो पुत्र अपके बाप को उजाड़ता, और अपक्की मां को भगा देता है, वह अपमान और लज्जा का कारण होगा।
27 हे मेरे पुत्र, यदि तू भटकना चाहता है, तो शिझा का सुनना छोड़ दे।
28 अधम साझी न्याय को ठट्ठोंमें उड़ाता है, और दुष्ट लोग अनर्य काम निगल लेते हैं।
29 ठट्ठा करनेवालोंके लिथे दण्ड ठहराया जाता है, और मूर्खोंकी पीठ के लिथे कोड़े हैं।