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नीतिवचन - Chapter 9

1 बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातोंखंभे गढ़े हुए हैं। 
2 उस ने अपके पशु वध करके, अपके दाखमधु में मसाला मिलाया है, और अपक्की मेज़ लगाई है। 
3 उस ने अपक्की सहेलियां, सब को बुलाने के लिथे भेजी है; वह नगर के ऊंचे स्यानोंकी चोटी पर पुकारती है, 
4 जो कोई भोला हे वह मुड़कर यहीं आए! और जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है, 
5 आओ, मेरी रोटी खाओ, और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु को पीओ। 
6 भोलोंका संग छोड़ो, और जीवित रहो, समझ के मार्ग में सीधे चलो। 
7 जो ठट्ठा करनेवाले को शिझा देता है, सो अपमानित होता है, और जो दुष्ट जन को डांटता है वह कलंकित होता है।। 
8 ठट्ठा करनेवाले को न डांट ऐसा न हो कि वह तुझ से बैर रखे, बुद्धिमान को डांट, वह तो तुझ से प्रेम रखेगा। 
9 बुद्धिमान को शिझा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा; धर्मी को चिता दे, वह अपक्की विद्या बढ़ाएगा। 
10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है। 
11 मेरे द्वारा तो तेरी आयु बढ़ेगी, और तेरे जीवन के वर्ष अधिक होंगे। 
12 यदि तू बुद्धिमान हो, ते बुद्धि का फल तू ही भोगेगा; और यदि तू ठट्ठा करे, तो दण्ड केवल तू ही भोगेगा।। 
13 मूर्खतारूपी स्त्री हौरा मचानेवाली है; वह तो भोली है, और कुछ नहीं जानती। 
14 वह अपके घर के द्वार में, और नगर के ऊंचे स्यानोंमें मचिया पर बैठी हुई 
15 जो बटोही अपना अपना मार्ग पकड़े हुए सीधे चले जाते हैं, उनको यह कह कहकर पुकारती है, 
16 जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए; जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है, 
17 चोरी का पानी मीठा होता है, और लुके छिपे की रोटी अच्छी लगती है। 
18 और वह नहीं जानता है, कि वहां मरे हुए पके हैं, और उस स्त्री के नेवतहारी अधोलोक के निचले स्यानोंमें पहुंचे हैं।।