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रोमियो - Chapter 1

1 पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और पे्ररित होने के लिथे बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिथे अलग किया गया है। 
2 जिस की उस ने पहिले ही से अपके भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्र शास्‍त्र में। 
3 अपके पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की यी, जो शरीर के भाव से तो दाद के वंश से उत्‍पन्न हुआ। 
4 और पवित्रता की आत्क़ा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्य के साय परमेश्वर का पुत्र ठहरा है। 
5 जिस के द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली; कि उसके नाम के कारण सब जातियोंके लोग विश्वास करके उस की मानें। 
6 जिन में से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिथे बुलाए गए हो। 
7 उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिथे बुलाए गए हैं।। हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्‍ति मिलती रहे।। 
8 पहिले मैं तुम सब के लिथे यीशु मसीह के द्वारा अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है। 
9 परमेश्वर जिस की सेवा मैं अपक्की आत्क़ा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूं, वही मेरा गवाह है; कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्क़रण करता रहता हूं। 
10 और नित्य अपक्की प्रार्यनाओं में बिनती करता हूं, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्‍छा से सुफल हो। 
11 क्‍योंकि मै। तुम से मिलने की लालसा करता हूं, कि मैं तुम्हें कोई आत्क़िक बरदान दूं जिस से तुम स्यिर हो जाओ। 
12 अर्यात्‍ यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साय उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्‍ति पां। 
13 और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस से अनजान रहो, कि मैं ने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियोंमें फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्‍तु अब तक रूका रहा। 
14 मैं यूनानियोंऔर अन्यभाषियोंका और बुद्धिमानोंऔर निर्बुद्धियोंका कर्जदान हूं। 
15 सो मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूं। 
16 क्‍योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिथे कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिथे, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिथे उद्धार के निमाि परमेश्वर की सामर्य है। 
17 क्‍योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिथे प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।। 
18 परमेश्वर का ोध तो उन लोगोंकी सब अभक्ति और अधर्म पर स्‍वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं। 
19 इसलिथे कि परमश्‍ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनोंमें प्रगट है, क्‍योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है। 
20 क्‍योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्यात्‍ उस की सनातन सामर्य, और परमेश्वरत्‍व जगत की सृष्‍टि के समय से उसके कामोंके द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूार हैं। 
21 इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्‍होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्‍तु व्यर्य विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्‍धेरा हो गया। 
22 वे अपके आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए। 
23 और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पझियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्‍तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।। 
24 इस कारण परमेश्वर ने उन्‍हें उन के मन के अभिलाषोंके अुनसार अशुद्धता के लिथे छोड़ दिया, कि वे आपस में अपके शरीरोंका अनादर करें। 
25 क्‍योंकि उन्‍होंने परमेश्वर की सच्‍चाई को बदलकर फूठ बना डाला, और सृष्‍टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।। 
26 इसलिथे परमश्‍ेवर ने उन्‍हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्‍त्रियोंने भी स्‍वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्‍वभाव के विरूद्ध है, बदल डाला। 
27 वैसे ही पुरूष भी स्‍त्रियोंके साय स्‍वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषोंने पुरूषोंके साय निर्लज्ज़ काम करके अपके भ्रम का ठीक फल पाया।। 
28 और जब उन्‍होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिथे परमेश्वर ने भी उन्‍हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें। 
29 सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्‍टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और फगड़े, और छल, और ईर्षा से भरपूर हो गए, और चुगलखोर। 
30 बदनाम करनेवाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरोंका अनादर करनेवाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातोंके बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा न माननेवाले। 
31 निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मयारिहत और निर्दय हो गए। 
32 वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले मुत्यु के दण्‍ड के योग्य हैं, तौभी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं, बरन करनेवालोंसे प्रसन्न भी होते हैं।।