1 निदान हम बलवानोंको चाहिए, कि निर्बलोंकी निर्बलताओं को सहें; न कि अपके आप को प्रसन्न करें।
2 हम में से हर एक अपके पड़ोसी को उस की भलाई के लिथे सुधारने के निमाि प्रसन्न करे।
3 क्योंकि मसीह ने अपके आप को प्रसन्न नहीं किया, पर जैसा लिखा है, कि तेरे निन्दकोंकी निन्दा मुझ पर आ पड़ी।
4 जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिझा के लिथे लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।
5 और धीरज, और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हें यह बरदान दे, कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो।
6 ताकि तुम एक मन औश्र् एक मुंह होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह कि पिता परमेश्वर की बड़ाई करो।
7 इसलिथे, जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिथे तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।
8 मैं कहता हूं, कि जो प्रतिज्ञाएं बापदादोंको दी गई यीं, उन्हें दृढ़ करने के लिथे मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिथे खतना किए हुए लोगोंका सेवक बना।
9 और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई करें, जैसा लिखा है, कि इसलिथे मैं जाति जाति में तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम के भजन गांगा।
10 फिर कहा है, हे जाति जाति के सब लोगों, उस की प्रजा के साय आनन्द करो।
11 और फिर हे जाति जाति के सब लागो, प्रभु की स्तुति करो; और हे राज्य राज्य के सब लोगो; उसे सराहो।
12 और फिर यशायाह कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी, और अन्यजातियोंका हाकिम होने के लिथे एक उठेगा, उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी।
13 सो परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्रआत्क़ा की सामर्य से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।।
14 हे मेरे भाइयो; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूं, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को चिता सकते हो।
15 तौभी मैं ने कहीं कहीं याद दिलाने के लिथे तुम्हें जो बहुत हियाव करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है।
16 कि मैं अन्याजातियोंके लिथे मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाई करूं; जिस से अन्यजातियोंका मानोंचढ़ाया जाना, पवित्र आत्क़ा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।
17 सो उन बातोंके विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूं।
18 क्योंकि उन बातोंको छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का हियाव नहीं, जो मसीह ने अन्यजातियोंकी अधीनता के लिथे वचन, और कर्म।
19 और चिन्होंऔर अदभुत् कामोंकी सामर्य से, और पवित्र आत्क़ा की सामर्य से मेरे ही द्वारा किए : यहां तक कि मैं ने यरूशलेम से लेकर चारोंओर इल्लुरिकुस तक मसीह के सुसमाचार का पूरा पूरा प्रचार किया।
20 पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहां जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनां; ऐसा न हो, कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा, वे ही देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।।
21 परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा, वे ही देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।।
22 इसी लिथे मैं तुम्हारे पास आने से बार बार रूका रहा।
23 परन्तु अब मुझे इन देशोंमें और जगह नहीं रही, और बहुत वर्षोंसे मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
24 इसलिथे जब इसपानिया को जांगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जांगा क्योंकि मुझे आशा है, कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूं, और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए, तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुंचा दो।
25 परन्तु अभी तो पवित्र लोगोंकी सेवा करने के लिथे यरूशलेम को जाता हूं।
26 क्योंकि मकिदुनिया और अखया के लोगोंको यह अच्छा लगा, कि यरूशलेम के पवित्र लोगोंके कंगालोंके लिथे कुछ चन्दा करें।
27 अच्छा तो लगा, परन्तु वे उन के कर्जदार भी हैं, क्योंकि यदि अन्यजाति उन की आत्क़िक बातोंमें भागी हुए, तो उन्हें भी उचित है, कि शारीरिक बातोंमें उन की सेवा करें।
28 सो मैं यह काम पूरा करके और उन को यह चन्दा सौंपकर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जांगा।
29 और मैं जानता हूं, कि जब मैं तुम्हारे पास आंगा, तो मसीह की पूरी आशीष के साय आंगा।।
30 और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्क़ा के प्रेम का स्क़रण दिला कर, तुम से बिनती करता हूं, कि मेरे लिथे परमेश्वर से प्रार्यना करने में मेरे साय मिलकर लौलीन रहो।
31 कि मैं यहूदिया के अविश्वासिक्कों बचा रहूं, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिथे है, पवित्र लोगोंको भाए।
32 और मैं परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साय आकर तुम्हारे साय विश्रम पां।
33 शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साय रहे। आमीन।।