1 इसलिथे हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्क़रण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपके शरीरो कोंजीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्क़िक सेवा है।
2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नथे हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।।
3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपके आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साय अपके को समझे।
4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगोंका एक ही सा काम नहीं।
5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न बरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
8 जो उपकेशक हो, वह उपकेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।
9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई मे लगे रहो।
10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्क़िक उन्क़ाद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो।
12 आशा मे आनन्दित रहो; क्लेश मे स्यिर रहो; प्रार्यना मे नित्य लगे रहो।
13 पवित्र लोगोंको जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहाथता करो; पहुनाई करने मे लगे रहो।
14 अपके सतानेवालोंको आशीष दो; आशीष दो स्त्राप न दो।
15 आनन्द करनेवालोंके साय आनन्द करो; और रोनेवालोंके साय रोओ।
16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनोंके साय संगति रखो; अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान न हो।
17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगोंके निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो।
18 जहां तक हो सके, तुम अपके भरसक सब मनुष्योंके साय मेल मिलाप रखो।
19 हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु ोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।
20 परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारोंका ढेर लगाएगा।
21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो।।