1 सो हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्योंन हो; तू निरूार है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपके आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिथे कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।
2 और हम जातने हैं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवालोंपर परमेश्वर की ओर से ठीक ठीक दण्ड की आज्ञा होती है।
3 और हे मनुष्य, तू जो ऐसे ऐसे काम करनेवालोंपर दोष लगाता है, और आप वे ही काम करता है; क्या यह समझता है, कि तू परमेश्वर की दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा
4 क्या तू उस की कृपा, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन को तुच्छ जानता है और कया यह नहीं समझता, कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है
5 पर अपक्की कठोरता और हठीले मन के अनुसार उसके ोध के दिन के लिथे, जिस में परमेश्वर का सच्चा न्याय प्रगट होगा, अपके निमाि ोध कमा रहा है।
6 वह हर एक को उसके कामोंके अनुसार बदला देगा।
7 जो सुकर्म में स्यिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में है, उन्हें अनन्त जीवन देगा।
8 पर जो विवादी हैं, और सत्य को नहीं मानते, बरन अधर्म को मानते हैं, उन पर ोध और कोप पकेगा।
9 और क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है, पहिले यहूदी पर फिर यूनानी पर।
10 पर महिमा और आदर ओर कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहिले यहूदी को फिर यूनानी को।
11 क्योंकि परमेश्वर किसी का पझ नहीं करता।
12 इसलिथे कि जिन्होंने बिना व्यवस्या पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्या के नाश भी होंगे, और जिन्होंने व्यवस्या पाकर पाप किया, उन का दण्ड व्यवस्या के अनुसार होगा।
13 क्योंकि परमेश्वर के यहां व्यवस्या के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्या पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएंगे।
14 फिर जब अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्या नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्या की बातोंपर चलते हैं, तो व्यवस्या उन के पास न होने पर भी वे अपके लिथे आप ही व्यवस्या हैं।
15 वे व्यवस्या की बातें अपके दयोंमें लिखी हुई दिखने हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है।
16 जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्योंकी गुप्त बातोंका न्याय करेगा।।
17 यदि तू यहूदी कहलाता है, और व्यवस्या पर भरोसा रखता है, और परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है।
18 और उस की इच्छा जानता और व्यवस्या की शिझा पाकर उाम उाम बातोंको प्रिय जानता है।
19 और अपके पर भरोसा रखता है, कि मैं अन्धोंका अगुवा, और अन्धकार में पके हुओं की ज्योति।
20 और बुद्धिहीनोंका सिखानेवाला, और बालकोंका उपकेशक हूं, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्या में है, मुझे मिला है।
21 सो क्या तू जो औरोंको सिखाता है, अपके आप को नहीं सिखाता क्या तू चोरी न करने का उपकेश देता है, आप ही चोरी करता है
22 तू जो कहता है, व्यभिचार न करना, क्या आप ही व्यभिचार करता है तू जो मूरतोंसे घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरोंको लूटता है।
23 तू जो व्यवस्या के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्या न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है
24 क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियोंमें परमेश्वर के नाम की निन्दा की जाती है जैसा लिखा भी है।
25 यदि तू व्यवस्या पर चले, तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्या को न माने, तो तेरा खतना बिन खतना की दशा ठहरा।
26 सो यदि खतनारिहत मनुष्य व्यवस्या की विधियोंको माना करे, तो क्या उस की बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी
27 और जो मनुष्य जाति के कारण बिन खतना रहा यदि वह व्यवस्या को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्या को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा
28 क्योंकि वह यहूदी नहीं, पर प्रगट में है, और देह में है।
29 पर यहूदी वही है, जो मन में है; और खतना वही है, जो दय का और आत्क़ा में है; न कि लेख का: ऐसे की प्रशंसा मनुष्योंकी ओर से नहीं, परन्तु परमेश्वर की ओर से होती है।।