1 मरियम और उस की बहिन मरया के गांव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार या।
2 यह वही मरियम यी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पांवोंको अपके बालोंसे पोंछा या, इसी का भाई लाजर बीमार या।
3 सो उस की बहिनोंने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।
4 यह सुनकर यीशु ने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिथे है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।
5 और यीशु मरया और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता या।
6 सो जब उस ने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्यान पर वह या, वहां दो दिन और ठहर गया।
7 फिर इस के बाद उस ने चेलोंसे कहा, कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।
8 चेलोंने उस से कहा, हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्यरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है
9 यीशु ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता है, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।
10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उस में प्रकाश नहीं।
11 उस ने थे बातें कहीं, और इस के बाद उन से कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं।
12 तब चेलोंने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।
13 यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा या: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
14 तब यीशु ने उन से साफ कह दिया, कि लाजर मर गया है।
15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूं कि मैं वहां न या जिस से तुम विश्वास करो, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।
16 तब योमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपके साय के चेलोंसे कहा, आओ, हम भी उसके साय मरने को चलें।
17 सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर या।
19 और बहुत से यहूदी मरया और मरियम के पास उन के भाई के विषय में शान्ति देने के लिथे आए थे।
20 सो मरया यीशु के आने का समचार सुनकर उस से भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
21 मरया ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
22 और अब भी मैं जानती हूं, कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।
23 यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा।
24 मरया ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरूत्यान के समय वह जी उठेगा।
25 यीशु ने उस से कहा, पुनरूत्यान और जीवन मैं ही हूं, जा कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26 और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है
27 उस ने उस से कहा, हां हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूं, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला या, वह तू ही है।
28 यह कहकर वह चक्की गई, और अपक्की बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है।
29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
30 (यीशु अभी गांव में नहीं पहुंचा या, परन्तु उसी स्यान में या जहां मरया ने उस से भेंट की यी।)
31 तब जो यहूदी उसके साय घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिथे।
32 जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु या, तो उसे देखते ही उसके पांवोंपर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता।
33 जब यीशु न उस को और उन यहूदियोंको जो उसके साय आए थे रोते हुए देखा, तो आत्क़ा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है
34 उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले।
35 यीशु के आंसू बहने लगे।
36 तब यहूदी कहने लगे, देखो, वह उस से कैसी प्रीति रखता या।
37 परन्तु उन में से कितनोंने कहा, क्या यह जिस ने अन्धे की आंखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता
38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा यी, और एक पत्यर उस पर धरा या।
39 यीशु ने कहा; पत्यर को उठाओ: उस मरे हुए की बहिन मरया उस से कहने लगी, हे प्रभु, उस में से अब तो र्दुगंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।
40 यीशु ने उस से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा ााि कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।
41 तब उन्होंने उस पत्यर को हटाया, फिर यीशु ने आंखें उठाकर कहा, हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि तू ने मेरी सुन ली है।
42 और मै जानता या, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उन के कारण मैं ने यह कहा, जिस से कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।
43 यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, कि हे लाजर, निकल आ।
44 जो मर गया या, वह कफन से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ यारू यीशु ने उन से कहा, उसे खोलकर जाने दो।।
45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा या, उन में से बहुतोंने उस पर विश्वास किया।
46 परन्तु उन में से कितनोंने फरीसियोंके पास जाकर यीशु के कामोंका समाचार दिया।।
47 इस पर महाथाजकोंऔर फरीसियोंने मुख्य सभा के लोगोंको इकट्ठा करके कहा, हम करते क्या हैं यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
48 यदि हम उसे योंही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनोंपर अधिक्कारने कर लेंगे।
49 तब उन में से काइफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महाथाजक या, उन से कहा, तुम कुछ नहीं जानते।
50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिथे यह भला है, कि हमारे लोगोंके लिथे एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।
51 यह बात उस ने अपक्की ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महाथाजक होकर भविष्यद्वणी की, कि यीशु उस जाति के लिथे मरेगा।
52 और न केवल उस जाति के लिथे, बरन इसलिथे भी, कि परमेश्वर की तित्तर बित्तर सन्तानोंको एक कर दे।
53 सो उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे।।
54 इसलिथे यीशु उस समय से यहूदियोंमें प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहां से जंगल के निकट के देख में इफ्राईम नाम, एक नगर को चला गया; और अपके चेलोंके साय वहीं रहने लगा।
55 और यहूदियोंका फसह निकट या, और बहुतेरे लोग फसह से पहिले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपके आप को शुद्ध करें।
56 सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, तुम क्या समझते हो
57 क्या वह पर्ब्ब में नहीं आएगा और महाथाजकोंऔर फरीसियोंने भी आज्ञा दे रखी यी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहां है तो बताए, कि उसे पकड़ लें।।