1 तब अय्यूब ने कहा;
2 नि:सन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी।
3 परन्तु तुम्हारी नाई मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगोंसे कुछ तीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो?
4 मैं ईश्वर से प्रार्यना करता या, और वह मेरी सुन दिया करता या; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धमीं और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है।
5 दु:खी लोग तो सुखियोंकी समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है।
6 डाकुओं के डेरे कुशल झेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है।
7 पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पझियोंसे, और वे तुझे बता देंगे।
8 पृय्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिझा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी।
9 कौन इन बातोंको नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपके हाथ से इस संसार को बनाया है।
10 उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है।
11 जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते?
12 बूढ़ां में बुद्धि पाई जाती है, और लम्बी आयुवालोंमें समझ होती तो है।
13 ईश्वर में पूरी बुद्धि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं।
14 देखो, जिसको वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता।
15 देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृय्वी उलट जाती है।
16 उस में सामर्य्य और खरी बुद्धि पाई जाती है; धोख देनेवाला और धोखा खानेवाला दोनोंउसी के हैं।
17 वह मंत्रियोंको लूटकर बन्धुआई में ले जाता, और न्यायियोंको मूर्ख बना देता है।
18 वह राजाओं का अधिक्कारने तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है।
19 वह याजकोंको लूटकर बन्धुआई में ले जाता और सामयिर्योंको उलट देता है।
20 वह विश्वासयोग्य पुरुषोंसे बोलने की शक्ति और पुरनियोंसे विवेक की शक्ति हर लेता है।
21 वह हाकिमोंको अपमान से लादता, और बलवानोंके हाथ ढीले कर देता है।
22 वह अन्धिक्कारने की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है।
23 वह जातियोंको बढ़ाता, और उनको नाश करता है; वह उनको फैलाता, और बन्धुआई में ले जाता है।
24 वह पृय्वी के मुख्य लोगोंकी बुद्धि उड़ा देता, और उनको निर्जन स्यानोंमें जहां रास्ता नहीं है, भटकाता है।
25 वे बिन उजियाले के अन्धेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले की नाई डगमगाते हुए चलते हैं।