1 फिर एलीहू योंकहता गया;
2 हे बुद्धिमानो ! मेरी बातें सुनो, और हे ज्ञानियो ! मेरी बातोंपर कान लगाओ;
3 क्योंकि जैसे जीभ से चखा जाता है, वैसे ही वचन कान से परखे जाते हैं।
4 जो कुछ ठीक है, हम अपके लिथे चुन लें; जो भला है, हम आपस में समझ बूफ लें।
5 क्योंकि अय्यूब ने कहा है, कि मैं निदॉष हूँ, और ईश्वर ने मेरा हक़ मार दिया है।
6 यद्यपि मैं सच्चाई पर हूं, तौभी फूठा ठहरता हूँ, मैं निरपराध हूँ, परन्तु मेरा घाव असाध्य है।
7 अय्यूब के तुल्य कौन शूरवीर है, जो ईश्वर की निन्दा पानी की नाई पीता है,
8 जो अनर्य करनेवालोंका साय देता, और दुष्ट मनुष्योंकी संगति रखता है?
9 उस ने तो कहा है, कि मनुष्य को इस से कुछ लाभ नहीं कि वह आनन्द से परमेश्वर की संगति रखे।
10 इसलिऐ हे समझवालो ! मेरी सुनो, यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशकितमान बुराई करे।
11 वह मनुष्य की करनी का फल देता है, और प्रत्थेक को अपक्की अपक्की चाल का फल भुगताता है।
12 नि:सन्देह ईश्वर दुष्टता नहीं करता और न सर्वशक्तिमान अन्याय करता है।
13 किस ने पृय्वी को उसके हाथ में सौंप दिया? वा किस ने सारे जगत का प्रबन्ध किया?
14 यदि वह मनुष्य से अपना मन हटाथे और अपना आत्मा और श्वास अपके ही में समेट ले,
15 तो सब देहधारी एक संग नाश हो जाएंगे, और मनुष्य फिर मिट्टी में मिल जाएगा।
16 इसलिथे इसको सुनकर समझ रख, और मेरी इन बातोंपर कान लगा।
17 जो न्याय का बैरी हो, क्या वह शासन करे? जो पूर्ण धमीं है, क्या तू उसे दुष्ट ठहराएगा?
18 वह राजा से कहता है कि तू नीच है; और प्रधानोंसे, कि तुम दुष्ट हो।
19 ईश्वर तो हाकिमोंका पझ नहीं करता और धनी और कंगाल दोनोंको अपके बनाए हुए जानकर उन में कुछ भेद नहीं करता।
20 आधी रात को पल भर में वे मर जाते हैं, और प्रजा के लोग हिलाए जाते और जाते रहते हैं। और प्रतापी लोग बिना हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं।
21 क्योंकि ईश्वर की आंखें मनुष्य की चालचलन पर लगी रहती हैं, और वह उसकी सारी चाल को देखता रहता है।
22 ऐसा अन्धिक्कारनेा वा घोर अन्धकार कहीं नहीं है जिस में अनर्य करनेवाले छिप सकें।
23 क्योंकि उस ने मनुष्य का कुछ समय नहीं ठहराया ताकि वह ईश्वर के सम्मुख अदालत में जाए।
24 वह बड़े बड़े बलवानोंको बिना मुछपाछ के चूर चूर करता है, और उनके स्यान पर औरोंको खड़ा कर देता है।
25 इसलिथे कि वह उनके कामोंको भली भांति जानता है, वह उन्हें रात में ऐसा उलट देता है कि वे चूर चूर हो जाते हैं।
26 वह उन्हें दुष्ट जानकर सभोंके देखते मारता है,
27 क्योंकि उन्होंने उसके पीछे चलना छोड़ दिया है, और उसके किसी मार्ग पर चित्त न लगाया,
28 यहां तक कि उनके कारण कंगालोंकी दोहाई उस तक पहुंची और उस ने दीन लोगोंकी दोहाई सुनी।
29 जब वह चैन देता तो उसे कौन दोषी ठहरा सकता है? और जब वह मुंह फेर ले, तब कौन उसका दर्शन पा सकता है? जाति भर के साय और अकेले मनुष्य, दोनोंके साय उसका बराबर व्यवहार है
30 ताकि भक्तिहीन राज्य करता न रहे, और प्रजा फन्दे में फंसाई न जाए।
31 क्या किसी ने कभी ईश्वर से कहा, कि मैं ने दणड सहा, अब मैं भविष्य में बुराई न करूंगा,
32 जो कुछ मुझे नहीं सूफ पड़ता, वह तू मुझे सिखा दे; और यदि मैं ने टेढ़ा काम किया हो, तो भविष्य में वैसा न करूंगा?
33 क्या वह तेरे ही मन के अनुसार बदला पाए क्योंकि तू उस से अप्रसन्न है? क्योंकि तुझे निर्णय करना है, न कि मुझे; इस कारण जो कुछ तुझे समझ पड़ता है, वह कह दे।
34 सब ज्ञानी पुरुष वरन जितले बुद्धिमान मेरी सुनते हैं वे मुझ से कहेंगे, कि
35 अय्यूब ज्ञान की बातें नहीं कहता, और न उसके वचन समझ के साय होते हैं।
36 भला होता, कि अय्यूब अन्त तब पक्कीझा में रहता, क्योंकि उस ने अनयिर्योंके से उत्तर दिए हैं।
37 और वह अपके पाप में विरोध बढ़ाता है; ओर हमारे बीच ताली बजाता है, और ईश्वर के पिरुद्ध बहुत सी बातें बनाता है।