1 फिर यहोवा ने अय्यूब से यह भी कहा:
2 क्या जो बकवास करता है वह सर्वशक्तिमान से फगड़ा करे? जो ईश्वर से विवाद करता है वह इसका उत्तर दे।
3 तब अय्यूब ते यहोवा को उत्तर दिया:
4 देख, मैं तो तुच्छ हूँ, मैं तुझे क्या उत्तर दूं? मैं अपक्की अंगुली दांत तले दबाता हूँ।
5 एक बार तो मैं कह चुका, परन्तु और कुछ न कहूंगा: हां दो बार भी मैं कह चुका, परन्तु अब कुछ और आगे न बढ़ूंगा।
6 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यह उत्तर दिया:
7 पुरुष की नाई अपक्की कमर बान्ध ले, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे बता।
8 क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्य ठहराएगा? क्या तू आप निदॉष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?
9 क्या तेरा बाहुबल ईश्वर के तुल्य है? क्या तू उसके समान शब्द से गरज सकता है?
10 अब अपके को महिमा और प्रताप से संवार और ऐश्वर्य्य और तेज के वस्त्र पहिन ले।
11 अपके अति क्रोध की बाढ़ को बहा दे, और एक एक घमणडी को देखते ही उसे नीचा कर।
12 हर एक घमणडी को देखकर फुका दे, और दुष्ट लोगोंको जहां खड़े होंवहां से गिरा दे।
13 उनको एक संग मिट्टी में मिला दे, और उस गुप्त स्यान में उनके मुंह बान्ध दे।
14 तब मैं भी तेरे विषय में मान लूंगा, कि तेरा ही दहिना हाथ तेरा उद्वार कर सकता है।
15 उस जलगज को देख, जिसको मैं ने तेरे साय बनाया है, वह बैल की नाई घास खाता है।
16 देख उसकी कटि में बल है, और उसके पेट के पट्ठोंमें उसकी सामर्य्य रहती है।
17 वह अपक्की पूंछ को देवदार की नाई हिलाता है; उसकी जांधोंकी नसें एक दूसरे से मिली हुई हैं।
18 उसकी हट्टियां मानो पीतल की नलियां हैं, उसकी पसुलियां मानो लोहे के बेंड़े हैं।
19 वह ईश्वर का मुख्य कार्य है; जो उसका सिरजनहार हो उसके निकट तलवार लेकर आए !
20 निश्चय पहाड़ोंपर उसका चारा मिलता है, जहां और सब वनपशु कालोल करते हैं।
21 वह छतनार वृझोंके तले नरकटोंकी आड़ में और कीच पर लेटा करता है
22 छतनार वृझ उस पर छाया करते हैं, वह नाले के बेंत के वृझोंसे घिरा रहता है।
23 चाहे नदी की बाढ़ भी हो तौभी वह न घबराएगा, चाहे यरदन भी बढ़कर उसके मुंह तक आए परन्तु वह निर्भय रहेगा।
24 जब वह चौकस हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकेगा, वा फन्दे लगाकर उसको नाय सकेगा?