1 फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; निदान यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी।
2 तब मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्यना की, तब वह आग बुफ गई,
3 और उस स्यान का नाम तबेरा पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उन में जल उठी यी।।
4 फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साय यी वह कामुकता करने लगी; और इस्त्राएली भी फिर रोने और कहने लगे, कि हमें मांस खाने को कौन देगा।
5 हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी;
6 परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।
7 मन्ना तो धनिथे के समान या, और उसका रंग रूप मोती का सा या।
8 लोग इधर उधर जाकर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते वा ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पुए का सा या।
9 और रात को छावनी में ओस पड़ती यी तब उसके साय मन्ना भी गिरता या।
10 और मूसा ने सब घरानोंके आदमियोंको अपके अपके डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी बुरा मालूम हुआ।
11 तब मूसा ने यहोवा से कहा, तू अपके दास से यह बुरा व्यवहार क्योंकरता है? और क्या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगोंका भार मुझ पर डाला है?
12 क्या थे सब लोग मेरे ही कोख में पके थे? क्या मैं ही ने उनको उत्पन्न किया, जो तू मुझ से कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपक्की गोद में उठाए उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगोंको अपक्की गोद में उठाकर उस देश में ले जाऊं, जिसके देने की शपय तू ने उनके पूर्वजोंसे खाई है?
13 मुझे इतना मांस कहां से मिले कि इन सब लोगोंको दूं? थे तो यह कह कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमे मांस खाने को दे।
14 मैं अकेला इन सब लोगोंका भार नहीं सम्भाल सकता, कयोंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है।
15 और जो तुझे मेरे साय यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपक्की दुर्दशा न देखने पाऊं।।
16 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएली पुरनियोंमें से सत्तर ऐसे पुरूष मेरे पास इकट्ठे कर, जिनको तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार हैं; और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साय यहां खड़े हों।
17 तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा; और जो आत्मा तुझ में है उस में से कुछ लेकर उन में समवाऊंगा; और वे इन लोगोंका भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पकेगा।
18 और लोगोंसे कह, कल के लिथे अपके को पवित्र करो, तब तुम्हें मांस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह कहकर रोए हो, कि हमें मांस खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। सो यहोवा तुम को मांस खाने को देगा, और तुम खाना।
19 फिर तुम एक दिन, वा दो, वा पांच, वा दस, वा बीस दिन ही नहीं,
20 परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नयनोंसे निकलने न लगे और तुम को उस से घृणा न हो जाए, कयोंकि तुम लोगोंने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके साम्हने यह कहकर रोए हो, कि हम मिस्र से क्योंनिकल आए?
21 फिर मूसा ने कहा, जिन लोगोंके बीच मैं हूं उन में से छ: लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है, कि मैं उन्हें इतना मांस दूंगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे।
22 क्या वे सब भेड़-बकरी गाय-बैल उनके लिथे मारे जाए, कि उनको मांस मिले? वा क्या समुद्र की सब मछलियां उनके लिथे इकट्ठी की जाएं, कि उनको मांस मिले?
23 यहोवा ने मूसा से कहा, क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा, कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं।
24 तब मूसा ने बाहर जाकर प्रजा के लोगोंको यहोवा की बातें कह सुनाई; और उनके पुरनियोंमें से सत्तर पुरूष इकट्ठे करके तम्बू के चारोंओर खड़े किए।
25 तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उस ने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उस में यी उस में से लेकर उन सत्तर पुरनियोंमें समवा दिया; और जब वह आत्मा उन में आई तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु फिर और कभी न की।
26 परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिस में से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद या, उन में भी आत्मा आई; थे भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिथे गथे थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में नबूवत करने लगे।
27 तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को बतलाया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबूवत कर रहे हैं।
28 तब नून का पुत्र यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरोंमें से या, उस ने मूसा से कहा, हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे।
29 मूसा ने उन से कहा, क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभोंमें समवा देता!
30 तब फिर मूसा इस्त्राएल के पुरनियोंसमेत छावनी में चला गया।
31 तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आंधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारोंओर इतनी ले आईं, कि वे इधर उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊंचे तक छा गए।
32 और लोगोंने उठकर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरोंको बटोरते रहे; जिस ने कम से कम बटोरा उस ने दस होमेर बटोरा; और उन्होंने उन्हें छावनी के चारोंओर फैला दिया।
33 मांस उनके मुंह ही में या, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उस ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा।
34 और उस स्यान का नाम किब्रोयत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगोंने कामुकता की यी उनको वहां मिट्टी दी गई।
35 फिर इस्त्राएली किब्रोयत्तावा से प्रस्यान करके हसेरोत में पहुंचे, और वहीं रहे।।