1 फिर दारा राजा के चौथे वर्ष में किसलेव नाम नौवें महीने के चौथे दिन को, यहोवा का वचन जकर्याह के पास पहुंचा।
2 बेतेलवासियोंने शरेसेर और रेगेम्मेलेक को इसलिथे भेजा या कि यहोवा से बिनती करें,
3 और सेनाओं के यहोवा के भवन के याजकोंसे और भविष्यद्वक्ताओं से भी यह पूछें, क्या हमें उपवास करके रोना चाहिथे जैसे कि कितने वर्षोंसे हम पांचवें महीने में करते आए हैं?
4 तब सेनाओं के यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा;
5 सब साधारण लोगोंसे और याजकोंसे कह, कि जब तुम इन सत्तर वर्षोंके बीच पांचवें और सातवें महीनोंमें उपवास और विलाप करते थे, तब क्या तुम सचमुच मेरे ही लिथे उपवास करते थे?
6 और जब तुम खाते-पीते हो, तो क्या तुम अपके ही लिथे नहीं खाते, और क्या तुम अपके ही लिथे नहीं पीते हो?
7 क्या यह वही वचन नहीं है, जो यहोवा अगले भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा उस समय पुकारकर कहता रहा जब यरूशलेम अपके चारोंओर के नगरोंसमेत चैन से बसा हुआ या, और दक्खिन देश और नीचे का देश भी बसा हुआ या?
8 फिर यहोवा का यह वचन जकर्याह के पास पहुंचा, सेनाओं के यहोवा ने योंकहा है,
9 खराई से न्याय चुकाना, और एक दूसरे के साय कृपा और दया से काम करना,
10 न तो विधवा पर अन्धेर करता, न अनायोंपर, न परदेशी पर, और न दीन जन पर; और न अपके अपके मन में एक दूसरे की हानि की कल्पना करना।
11 परन्तु उन्होंने चित्त लगाना न चाहा, और हठ किया, और अपके कानोंको मूंद लिया ताकि सुन न सकें।
12 वरन उन्होंने अपके ह्रृदय को इसलिथे बज्र सा बना लिया, कि वे उस व्यवस्या और उस वचनोंको न मान सकें जिन्हें सेनाओं के यहोवा ने अपके आत्मा के द्वारा अगले भविष्यद्वक्ताओं से कहला भेजा या। इस कारण सेनाओं के यहोवा की ओर से उन पर बड़ा क्रोध भड़का।
13 और सेनाओं के यहोवा का यह वचन हुआ, कि जैसे मेरे पुकारने पर उन्होंने नहीं सुना, वैसे ही उसके पुकारने पर मैं भी न सुनूंगा;
14 वरन मैं उन्हें उन सब जातियोंके बीच जिन्हें वे नहीं जानते, आंधी के द्वारा तितर-बितर कर दूंगा, और उनका देश उनके पीछे ऐसा उजाड़ पड़ा रहेगा कि उस में किसी का आना जाना न होगा; इसी प्राकर से उन्होंने मनोहर देश को उजाड़ कर दिया।।