1 इब्राहीम वृद्ध या और उसकी आयु बहुत भी और यहोवा ने सब बातोंमें उसको आशीष दी यी।
2 सो इब्राहीम ने अपके उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिक्कारनेी या, कहा, अपना हाथ मेरी जांघ के नीचे रख :
3 और मुझ से आकाश और पृय्वी के परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपय खा, कि तू मेरे पुत्र के लिथे कनानियोंकी लड़कियोंमें से जिनके बीच मैं रहता हूं, किसी को न ले आएगा।
4 परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियोंके पास जाकर मेरे पुत्र इसहाक के लिथे एक पत्नी ले आएगा।
5 दास ने उस से कहा, कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साय आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहां से तू आया है ले जाना पकेगा ?
6 इब्राहीम ने उस से कहा, चौकस रह, मेरे पुत्र को वहां कभी न ले जाना।
7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्मभूमि से ले आकर मुझ से शपय खाकर कहा, कि मैं यह देश तेरे वंश को दूंगा; वही अपना दूत तेरे आगे आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्र के लिथे वहां से एक स्त्री ले आए।
8 और यदि वह स्त्री तेरे साय आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपय से छूट जाएगा : पर मेरे पुत्र को वहां न ले जाना।
9 तब उस दास ने अपके स्वामी इब्राहीम की जांघ के नीचे अपना हाथ रखकर उस से इसी विषय की शपय खाई।
10 तब वह दास अपके स्वामी के ऊंटो में से दस ऊंट छंाटकर उसके सब उत्तम उत्तम पदार्योंमें से कुछ कुछ लेकर चला : और मसोपोटामिया में नाहोर के नगर के पास पहुंचा।
11 और उस ने ऊंटोंको नगर के बाहर एक कुएं के पास बैठाया, वह संध्या का समय या, जिस समय स्त्रियां जल भरने के लिथे निकलती है।
12 सो वह कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर, यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी इब्राहीम पर करूणा कर।
13 देख मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूं; और नगरवासियोंकी बेटियोंजल भरने के लिथे निकली आती हैं :
14 सो ऐसा होने दे, कि जिस कन्या से मैं कहूं, कि अपना घड़ा मेरी ओर फुका, कि मैं पीऊं; और वह कहे, कि ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटो को भी पीलाऊंगी : सो वही हो जिसे तू ने अपके दास इसहाक के लिथे ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करूणा की है।
15 और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा या कि रिबका, जो इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माथे मिल्का के पुत्र, बतूएल की बेटी यी, वह कन्धे पर घड़ा लिथे हुए आई।
16 वह अति सुन्दर, और कुमारी यी, और किसी पुरूष का मुंह न देखा या : वह कुएं में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भर के फिर ऊपर आई।
17 तब वह दास उस से भेंट करने को दौड़ा, और कहा, अपके घड़े मे से योड़ा पानी मुझे पिला दे।
18 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, ले, पी ले: और उस ने फुर्ती से घड़ा उतारकर हाथ में लिथे लिथे उसको पिला दिया।
19 जब वह उसको पिला चुकी, तक कहा, मैं तेरे ऊंटोंके लिथे भी तब तक पानी भर भर लाऊंगी, जब तक वे पी न चुकें।
20 तब वह फुर्ती से अपके घड़े का जल हौदे में उण्डेलकर फिर कुएं पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊंटोंके लिथे पानी भर दिया।
21 और वह पुरूष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साय ताकता हुआ यह सोचता या, कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सुफल किया है कि नहीं।
22 जब ऊंट पी चुके, तब उस पुरूष ने आध तोले सोने का एक नत्य निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथोंमें पहिना दिए;
23 और पूछा, तू किस की बेटी है? यह मुझ को बता दे। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिथे स्यान है ?
24 उस ने उत्तर दिया, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं।
25 फिर उस ने उस से कहा, हमारे वहां पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिथे स्यान भी है।
26 तब उस पुरूष ने सिर फुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा,
27 धन्य है मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा, कि उस ने अपक्की करूणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया : यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई बन्धुओं के घर पर पहुचा दिया है।
28 और उस क्न्या ने दौड़कर अपक्की माता के घर में यह सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
29 तब लाबान जो रिबका का भाई या, सो बाहर कुएं के निकट उस पुरूष के पास दौड़ा गया।
30 और ऐसा हुआ कि जब उस ने वह नत्य और अपक्की बहिन रिबका के हाथोंमें वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी, कि उस पुरूष ने मुझ से ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरूष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊंटोंके पास खड़ा है।
31 उस ने कहा, हे यहोवा की ओर से धन्य पुरूष भीतर आ : तू क्योंबाहर खड़ा है ? मैं ने घर को, और ऊंटो के लिथे भी स्यान तैयार किया है।
32 और वह पुरूष घर में गया; और लाबान ने ऊंटोंकी काठियां खोलकर पुआल और चारा दिया; और उसके, और उसके संगी जनो के पांव धोने को जल दिया।
33 तब इब्राहीम के दास के आगे जलपान के लिथे कुछ रखा गया : पर उस ने कहा मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूं, तब तक कुछ न खाऊंगा। लाबान ने कहा, कह दे।
34 तक उस ने कहा, मैं तो इब्राहीम का दास हूं।
35 और यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; सो वह महान पुरूष हो गया है; और उस ने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना-रूपा, दास-दासियां, ऊंट और गदहे दिए है।
36 और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उस से एक पुत्र उत्पन्न हुआ है। और उस पुत्र को इब्राहीम ने अपना सब कुछ दे दिया है।
37 और मेरे स्वामी ने मुझे यह शपय खिलाई, कि मैं उसके पुत्र के लिथे कनानियोंकी लड़कियोंमें से जिन के देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊंगा।
38 मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगोंके पास जाकर उसके पुत्र के लिथे एक स्त्री ले आऊंगा।
39 तब मैं ने अपके स्वामी से कहा, कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए।
40 तब उस ने मुझ से कहा, यहोवा, जिसके साम्हने मैं चलता आया हूं, वह तेरे संग अपके दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सुफल करेगा; सो तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिथे एक स्त्री ले आ सकेगा।
41 तू तब ही मेरी इस शपय से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगोंके पास पहुंचेगा; अर्यात् यदि वे मुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी श्पय से छूटेगा।
42 सो मैं आज उस कुएं के निकट आकर कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सुफल करता हो :
43 तो देख मैं जल के इस कुएं के निकट खड़ा हूं; सो ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिथे निकल आए, और मैं उस से कहूं, अपके घड़े में से मुझे योड़ा पानी पिला;
44 और वह मुझ से कहे, पी ले और मै तेरे ऊंटो के पीने के लिथे भी पानी भर दूंगी : वह वही स्त्री हो जिसको तू ने मेरे स्वामी के पुत्र के लिथे ठहराया हो।
45 मैं मन ही मन यह कह ही रहा या, कि देख रिबका कन्धे पर घड़ा लिथे हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतरके भरने लगी : और मै ने उस से कहा, मुझे पिला दे।
46 और उस ने फुर्ती से अपके घड़े को कन्धे पर से उतारके कहा, ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटोंको भी पिलाऊंगी : सो मैं ने पी लिया, और उस ने ऊंटोंको भी पिला दिया।
47 तब मैं ने उस से पूछा, कि तू किस की बेटी है ? और उस ने कहा, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं : तब मैं ने उसकी नाक में वह नत्य, और उसके हाथोंमें वे कंगन पहिना दिए।
48 फिर मैं ने सिर फुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपके स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उस ने मुझे ठीक मार्ग से पहुंचाया कि मै अपके स्वामी के पुत्र के लिथे उसकी भतीजी को ले जाऊं।
49 सो अब, यदि तू मेरे स्वामी के साय कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझ से कहो : और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझ से कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, वा बाईं ओर फिर जाऊं।
50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, यह बात यहोवा की ओर से हुई है : सो हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा।
51 देख, रिबका तेरे साम्हने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए।
52 उनका यह वचन सुनकर, इब्राहीम के दास ने भूमि पर गिरके यहोवा को दण्डवत् किया।
53 फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए : और उसके भाई और माता को भी उस ने अनमोल अनमोल वस्तुएं दी।
54 तब उस ने अपके संगी जनोंसमेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई : और तड़के उठकर कहा, मुझ को अपके स्वामी के पास जाने के लिथे विदा करो।
55 रिबका के भाई और माता ने कहा, कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्यात् कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चक्की जाएगी।
56 उस ने उन से कहा, यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सुफल किया है; सो तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपके स्वामी के पास जाऊं।
57 उन्होंने कहा, हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है।
58 सो उन्होंने रिबका को बुलाकर उस से पूछा, क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी? उस ने कहा, हां मैं जाऊंगी।
59 तब उन्होंने अपक्की बहिन रिबका, और उसकी धाय और इब्राहीम के दास, और उसके सायी सभोंको विदा किया।
60 और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद देके कहा, हे हमारी बहिन, तू हजारोंलाखोंकी आदिमाता हो, और तेरा वंश अपके बैरियोंके नगरोंका अधिक्कारनेी हो।
61 इस पर रिबका अपक्की सहेलियोंसमेत चक्की; और ऊंट पर चढ़के उस पुरूष के पीछे हो ली : सो वह दास रिबका को साय लेकर चल दिया।
62 इसहाक जो दक्खिन देश में रहता या, सो लहैरोई नाम कुएं से होकर चला आता या।
63 और सांफ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिथे निकला या : और उस ने आंखे उठाकर क्या देखा, कि ऊंट चले आ रहे हैं।
64 और रिबका ने भी आंख उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊंट पर से उतर पक्की
65 तब उस ने दास से पूछा, जो पुरूष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है? दास ने कहा, वह तो मेरा स्वामी है। तब रिबका ने घूंघट लेकर अपके मुंह को ढ़ाप लिया।
66 और दास ने इसहाक से अपना सारा वृत्तान्त वर्णन किया।
67 तब इसहाक रिबका को अपक्की माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याहकर उस से प्रेम किया : और इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति हुई।।