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उत्पत्ति - Chapter 28

1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, कि तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। 
2 पद्दनराम में अपके नाना बतूएल के घर जाकर वहां अपके मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना। 
3 और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फुला-फलाकर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो। 
4 और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम को दिया या, उसका अधिक्कारनेी हो जाए। 
5 और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के उस पुत्र लाबान के पास चला, जो याकूब और एसाव की माता रिबका का भाई या। 
6 जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी ब्याह लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, कि तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना; 
7 और याकूब माता पिता की मानकर पद्दनराम को चल दिया; 
8 तब एसाव यह सब देख के और यह भी सोचकर, कि कनानी लड़कियां मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, 
9 इब्राहीम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन भी, ब्याहकर अपक्की पत्नियोंमे मिला लिया।। 
10 सो याकूब बेर्शेबा से निकलकर हारान की ओर चला। 
11 और उस ने किसी स्यान में पहुंचकर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया या; सो उस ने उस स्यान के पत्यरोंमें से एक पत्यर ले अपना तकिया बनाकर रखा, और उसी स्यान में सो गया। 
12 तब उस ने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृय्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है : और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। 
13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा होकर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं : जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा। 
14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकोंके समान बहुत होगा, और पच्छिम, पूरब, उत्तर, दक्खिन, चारोंओर फैलता जाएगा : और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृय्वी के सारे कुल आशीष पाएंगे। 
15 और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रझा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा : मैं अपके कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोडूंगा। 
16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्यान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता या। 
17 और भय खाकर उस ने कहा, यह स्यान क्या ही भयानक है ! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा। 
18 भोर को याकूब तड़के उठा, और अपके तकिए का पत्यर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिक्के पर तेल डाल दिया। 
19 और उस ने उस स्यान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहिले लूज या। 
20 और याकूब ने यह मन्नत मानी, कि यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रझा करे, और मुझे खाने के लिथे रोटी, और पहिनने के लिथे कपड़ा दे, 
21 और मैं अपके पिता के घर में कुशल झेम से लौट आऊं : तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा। 
22 और यह पत्यर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा : और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा।।