1 जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न है, तब उस ने अपके पुत्रोंसे कहा, तुम एक दूसरे का मुंह क्योंदेख रहे हो।
2 फिर उस ने कहा, मैं ने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिथे तुम लोग वहां जाकर हमारे लिथे अन्न मोल ले आओ, जिस से हम न मरें, वरन जीवित रहें।
3 सो यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिथे मिस्र को गए।
4 पर यूसुफ के भाई बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयोंके साय न भेजा, कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पके।
5 सो जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साय इस्राएल के पुत्र भी आए; क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल या।
6 यूसुफ तो मिस्र देश का अधिक्कारनेी या, और उस देश के सब लोगोंके हाथ वही अन्न बेचता या; इसलिथे जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुंह के बल गिरके दण्डवत् किया।
7 उनको देखकर यूसुफ ने पहिचान तो लिया, परन्तु उनके साम्हने भोला बनके कठोरता के साय उन से पूछा, तुम कहां से आते हो? उन्होंने कहा, हम तो कनान देश से अन्न मोल लेने के लिथे आए हैं।
8 यूसुफ ने तो अपके भाइयोंको पहिचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहिचाना।
9 तब यूसुफ अपके उन स्वप्नोंको स्मरण करके जो उस ने उनके विषय में देखे थे, उन से कहने लगा, तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा को देखने के लिथे आए हो।
10 उन्होंने उस से कहा, नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिथे आए हैं।
11 हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं।
12 उस ने उन से कहा, नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो।
13 उन्होंने कहा, हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरूष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा।
14 तब यूसुफ ने उन से कहा, मैं ने तो तुम से कह दिया, कि तुम भेदिए हो;
15 सो इसी रीति से तुम परखे जाओगे, फिरौन के जीवन की शपय, जब तक तुम्हारा छोटा भाई यहां न आए तब तक तुम यहां से न निकलने पाओगे।
16 सो अपके में से एक को भेज दो, कि वह तुम्हारे भाई को ले आए, और तुम लोग बन्धुवाई में रहोगे; इस प्रकार तुम्हारी बातें परखी जाएंगी, कि तुम में सच्चाई है कि नहीं। यदि सच्चे न ठहरे तब तो फिरौन के जीवन की शपय तुम निश्चय ही भेदिए समझे जाओगे।
17 तब उस ने उनको तीन दिन तक बन्दीगृह में रखा।
18 तीसरे दिन यूसुफ ने उन से कहा, एक काम करो तब जीवित रहोगे; क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूं;
19 यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाइयोंमें से एक जन इस बन्दीगृह में बन्धुआ रहे; और तुम अपके घरवालोंकी भूख बुफाने के लिथे अन्न ले जाओ।
20 और अपके छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी, और तुम मार डाले न जाओगे। तब उन्होंने वैसा ही किया।
21 उन्होंने आपस में कहा, निस्न्देह हम अपके भाई के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उस ने हम से गिड़गिड़ाके बिनती की, तौभी हम ने यह देखकर, कि उसका जीवन केसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पके हैं।
22 रूबेन ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा या, कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना : देखो, अब उसके लोहू का पलटा दिया जाता है।
23 यूसुफ की और उनकी बातचीत जो एक दुभाषिया के द्वारा होती यी; इस से उनको मालूम न हुआ कि वह उनकी बोली समझता है।
24 तब वह उनके पास से हटकर रोने लगा; फिर उनके पास लौटकर और उन से बातचीत करके उन में से शिमोन को छांट निकाला और उसके साम्हने बन्धुआ रखा।
25 तब यूसुफ ने आज्ञा दी, कि उनके बोरे अन्न से भरो और एक एक जन के बोरे में उसके रूपके को भी रख दो, फिर उनको मार्ग के लिथे सीधा दो : सो उनके साय ऐसा ही किया गया।
26 तब वे अपना अन्न अपके गदहोंपर लादकर वहां से चल दिए।
27 सराय में जब एक ने अपके गदहे को चारा देने के लिथे अपना बोरा खोला, तब उसका रूपया बोरे के मोहड़े पर रखा हुआ दिखलाई पड़ा।
28 तब उस ने अपके भाइयोंसे कहा, मेरा रूपया तो फेर दिया गया है, देखो, वह मेरे बोरे में है; तब उनके जी में जी न रहा, और वे एक दूसरे की और भय से ताकने लगे, और बोले, परमेश्वर ने यह हम से क्या किया है ?
29 और वे कनान देश में अपके पिता याकूब के पास आए, और अपना सारा वृत्तान्त उस से इस प्रकार वर्णन किया :
30 कि जो पुरूष उस देश का स्वामी है, उस ने हम से कठोरता के साय बातें कीं, और हम को देश के भेदिए कहा।
31 तब हम ने उस से कहा, हम सीधे लोग हैं, भेदिए नहीं।
32 हम बारह भाई एक ही पिता के पुत्र है, एक तो जाता रहा, परन्तु छोटा इस समय कनान देश में हमारे पिता के पास है।
33 तब उस पुरूष ने, जो उस देश का स्वामी है, हम से कहा, इस से मालूम हो जाएगा कि तुम सीधे मनुष्य हो; तुम अपके में से एक को मेरे पास छोड़के अपके घरवालोंकी भूख बुफाने के लिथे कुछ ले जाओ।
34 और अपके छोटे भाई को मेरे पास ले आओ। तब मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम भेदिए नहीं, सीधे लोग हो। फिर मैं तुम्हारे भाई को तुम्हें सौंप दूंगा, और तुम इस देश में लेन देन कर सकोगे।
35 यह कहकर वे अपके अपके बोरे से अन्न निकालने लगे, तब, क्या देखा, कि एक एक जन के रूपके की यैली उसी के बोरे में रखी है : तब रूपके की यैलियोंको देखकर वे और उनका पिता बहुत डर गए।
36 तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, मुझ को तुम ने निर्वंश कर दिया, देखो, यूसुफ नहीं रहा, और शिमोन भी नहीं आया, और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो : थे सब विपत्तियां मेरे ऊपर आ पक्की हैं।
37 रूबेन ने अपके पिता से कहा, यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊं, तो मेरे दोनोंपुत्रोंको मार डालना; तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुंचा दूंगा।
38 उस ने कहा, मेरा पुत्र तुम्हारे संग न जाएगा; क्योंकि उसका भाई मर गया है, और वह अब अकेला रह गया : इसलिथे जिस मार्ग से तुम जाओगे, उस में यदि उस पर कोई विपत्ति आ पके, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्या में शोक के साय अधोलोक में उतर जाऊंगा।।