1 यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के घराने जो वचन यहोवा तुम से कहता है उसे सुनो।
2 अन्यजातियोंको चाल मत सीखो, न उनकी नाई आकाश के चिन्होंसे विस्मित हो, इसलिथे कि अन्यजाति लोग उन से विस्मित होते हैं।
3 क्योंकि देशोंके लोगोंकी रीतियां तो निकम्मी हैं। मूरत तो बन में से किसी का काटा हुआ काठ है जिसे कारीगर ने बसूले से बनाया है।
4 लोग उसको सोने-चान्दी से सजाते और हयैड़े से कील ठोंक ठोंककर दुढ़ करते हैं कि वह हिल-डुल न सके।
5 वे खरादकर ताड़ के पेड़ के समान गोल बनाई जाती हैं, पर बोल नहीं सकतीं; उन्हें उठाए फिरना पड़ता है, क्योंकि वे चल नहीं सकतीं। उन से मत डरो, क्योंकि, न तो वे कुछ बुरा कर सकती हैं और न कुछ भला।
6 हे यहोवा, तेरे समान कोई नहीं है; तू महान है, और तेरा नाम पराक्रम में बड़ा है।
7 हे सब जातियोंके राजा, तुझ से कौन न डरेगा? क्योंकि यह तेरे योग्य है; अन्यजातियोंके सारे बुद्धिमानोंमें, और उनके सारे राज्योंमें तेरे समान कोई नहीं है।
8 परन्तु वे पशु सरीखे निरे मूर्ख हैं; मूत्तिर्योंसे क्या शिझा? वे तो काठ ही हैं !
9 पत्तर बनाई हुई चान्दी तशींश से लाई जाती है, और उफाज से सोना। वे कारीगर और सुनार के हाथोंकी कारीगरी हैं; उनके पहिरावे नीले और बैंजनी रंग के वस्त्र हैं; उन में जो कुछ है वह निपुण कारीगरोंकी कारीगरी ही है।
10 परन्तु यहोवा वास्तव में परमेश्वर है; जीवित परमेश्वर और सदा का राजा वही है। उसके प्रकोप से पृय्वी कांपक्की है, और जाति जाति के लोग उसके क्रोध को सह नहीं सकते।
11 तुम उन से यह कहना, थे देवता जिन्होंने आकाश और पृय्वी को नहीं बनाया वे पृय्वी के ऊपर से और आकाश के नीचे से नष्ट हो जाएंगे।
12 उसी ने पृय्वी को अपक्की सामर्य से बनाया, उस ने जगत को अपक्की बुद्धि से स्यिर किया, और आकाश को अपक्की प्रवीणता से तान दिया है।
13 जब वह बोलता है तब आकाश में जल का बड़ा शब्द होता है, और पृय्वी की छोर से वह कुहरे को उठाता है। वह वर्षा के लिथे बिजली चमकाता, और अपके भणडार में से पवन चलाता है।
14 सब मनुष्य पशु सरीखे ज्ञानरहित हैं; अपक्की खोदी हुई मूरतोंके कारण सब सुनारोंकी आशा टूटती है; क्योंकि उनकी ढाली हुई मूरतें फूठी हैं, और उन में सांस ही नहीं है।
15 वे व्यर्य और ठट्ठे ही के योग्य हैं; जब उनके दण्ड का समय आएगा तब वे नाश हो जाएंगीं।
16 परन्तु याकूब का निज भाग उनके समान नहीं है, क्योंकि वह तो सब का सृजनहार है, और इस्राएल उसके निज भाग का गोत्र है; सेनाओं का यहोवा उसका नाम है।
17 हे घेरे हुए नगर की रहनेवाली, अपक्की गठरी भूमि पर से उठा !
18 क्योंकि यहोवा योंकहता है, मैं अब की बार इस देश के रहनेवालोंको मानो गोफ़न में धरके फेंक दूंगा, और उन्हें ऐसे ऐसे संकट में डालूंगा कि उनकी समझ में भी नहीं आएगा।
19 मुझ पर हाथ ! मेरा घाव चंगा होने का नहीं। फिर मैं ने सोचा, यह तो रोग ही है, इसलिथे मुझ को इसे सहना चाहिथे।
20 मेरा तम्बू लूटा गया, और सब रस्सियां टूट गई हैं; मेरे लड़केबाले मेरे पास से चले गए, और नहीं हैं; अब कोई नहीं रहा जो मेरे तम्बू को ताने और मेरी कनातें खड़ी करे।
21 क्योंकि चरवाहे पशु सरीखे हैं, और वे यहोवा को नहीं पुकारते; इसी कारण वे बुद्धि से नहीं चलते, और उनकी सब भेड़ें तितर-बितर हो गई हैं।
22 सुन, एक शब्द सुनाई देता है ! देख, वह आ रहा है ! उत्तर दिशा से बड़ा हुल्लड़ मच रहा है ताकि यहूदा के नगरोंको उजाड़कर गीदड़ोंका स्यान बना दे।
23 हे यहोवा, मैं जान गया हूँ, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो हे, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।
24 हे यहोवा, मेरी ताड़ना कर, पर न्याय से; क्रोध में आकर नहीं, कहीं ऐसा न हो कि मैं नाश हो जाऊं।
25 जो जाति तुझे नहीं जानती, और जो तुझ से प्रार्यना नहीं करते, उन्हीं पर अपक्की जलजलाहट उण्डेल; क्योंकि उन्होंने याकूब को निगल लिया, वरन, उसे खाकर अन्त कर दिया है, और उसके निवासस्यान को उजाड़ दिया है।