1 जब लोगोंने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, अब हमारे लिथे देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?
2 हारून ने उन से कहा, तुम्हारी स्त्रियोंऔर बेटे बेटियोंके कानोंमें सोने की जो बालियां है उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ।
3 तब सब लोगोंने उनके कानोंसे सोने की बालियोंको तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए।
4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टांकी से गढ़ा; तब वे कहने लगे, कि हे इस्त्राएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है।
5 यह देखके हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, कि कल यहोवा के लिथे पर्ब्ब होगा।
6 और दूसरे दिन लोगोंने तड़के उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।।
7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, सो बिगड़ गए हैं;
8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उनको दी यी उसको फटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिथे बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, कि हे इस्त्राएलियोंतुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है।
9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, मैं ने इन लोगोंको देखा, और सुन, वे हठीले हैं।
10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा।
11 तब मूसा अपके परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपक्की प्रजा पर क्योंभड़का है, जिसे तू बड़े सामर्य्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है?
12 मिस्री लोग यह क्योंकहने पाए, कि वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्यात् पहाड़ोंमें घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपके भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपक्की प्रजा को ऐसी हानि पहुचाने से फिर जा।
13 अपके दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपक्की ही किरिया खाकर यह कहा या, कि मै तुम्हारे वंश को आकाश के तारोंके तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिक्कारनेी सदैव बने रहें।
14 तब यहोवा अपक्की प्रजा की हानि करने से जो उन ने कहा या पछताया।।
15 तब मूसा फिरकर साझी की दानोंतख्तियोंको हाथ में लिथे हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियोंके तो इधर और उधर दोनोंअलंगोंपर कुछ लिखा हुआ या।
16 और वे तख्तियां परमेश्वर की बनाई हुई यीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ या वह परमेश्वर का लिखा हुआ या।।
17 जब यहोशू को लोगोंके कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उस ने मूसा से कहा, छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है।
18 उस ने कहा, वह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालोंका है, और न हारनेवालोंका, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है।
19 छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उस ने तख्तियोंको अपके हाथोंसे पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला।
20 तब उस ने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डालके फूंक दिया। और पीसकर चूर चूर कर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्त्राएलियोंको उसे पिलवा दिया।
21 तब मूसा हारून से कहने लगा, उन लोगोंने तुझ से क्या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फंसाया?
22 हारून ने उत्तर दिया, मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगोंको जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं।
23 और उन्होंने मुझ से कहा, कि हमारे लिथे देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?
24 तब मैं ने उन से कहा, जिस जिसके पास सोने के गहनें हों, वे उनको तोड़कर उतार लाएं; और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा
25 हारून ने उन लोगोंको ऐसा निरंकुश कर दिया या कि वे अपके विरोधियोंके बीच उपहास के योग्य हुए,
26 उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए; तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए।
27 उस ने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि अपक्की अपक्की जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपके अपके भाइयों, संगियों, और पड़ोसिक्कों घात करो।
28 मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियोंने किया और उस दिन तीन हजार के अटकल लोग मारे गए।
29 फिर मूसा ने कहा, आज के दिन यहोवा के लिथे अपना याजकपद का संस्कार करो, वरन अपके अपके बेटोंऔर भाइयोंके भी विरूद्ध होकर ऐसा करो जिस से वह आज तुम को आशीष दे।
30 दूसरे दिन मूसा ने लोगोंसे कहा, तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊंगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त कर सकूं।
31 तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, कि हाथ, हाथ, उन लोगोंने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है।
32 तौभी अब तू उनका पाप झमा कर नहीं तो अपक्की लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे।
33 यहोवा ने मूसा से कहा, जिस ने मेरे विरूद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपक्की पुस्तक में से काट दूंगा।
34 अब तो तू जाकर उन लोगोंको उस स्यान में ले चल जिसकी चर्चा मैं ने तुझ से की यी; देख मेरा दूत तेरे आगे आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूंगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूंगा।
35 और यहोवा ने उन लोगोंपर विपत्ति डाली, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया या।