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व्यवस्थाविवरण - Chapter 30

1 फिर जब आशीष और शाप की थे सब बातें जो मैं ने तुझ को कह सुनाई हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियोंके मध्य में रहकर, जहां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बरबस पहुंचाएगा, इन बातोंको स्मरण करे, 
2 और अपक्की सन्तान सहित अपके सारे मन और सारे प्राण से अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फिरकर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूं उसकी बातें माने; 
3 तब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बन्धुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशोंके लोगोंमें से जिनके मध्य में वह तुझ को तित्तर बित्तर कर देगा फिर इकट्ठा करेगा। 
4 चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुंचाया जाना हो, तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को वहां से ले आकर इकट्ठा करेगा। 
5 और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुंचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिक्कारनेी हुए थे, और तू फिर उसका अधिक्कारनेी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझ को तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा। 
6 और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपके परमेश्वर यहोवा से अपके सारे मन और सारे प्राण के साय प्रेम करे, जिस से तू जीवित रहे। 
7 और तेरा परमेश्वर यहोवा थे सब शाप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझ से बैर करके तेरे पीछे पकेंगे भेजेगा। 
8 और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं। 
9 और यहोवा तेरी भलाई के लिथे तेरे सब कामोंमें, और तेरी सन्तान, और पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिथे वैसा ही आनन्द करेगा, जैसा उस ने तेरे पूर्वजोंके ऊपर किया या; 
10 क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियोंको जो इस व्यवस्या की पुस्तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपके परमेश्वर यहोवा की ओर अपके सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा।। 
11 देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, वह न तो तेरे लिथे अनोखी, और न दूर है। 
12 और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, कि कौन हमारे लिथे आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 
13 और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, कौन हमारे लिथे समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 
14 परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन तेरे मुंह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले।। 
15 सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है। 
16 क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं, कि अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मागार्ें पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमोंको मानना, जिस से तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे। 
17 परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत करे और उनकी उपासना करने लगे, 
18 तो मैं तुम्हें आज यह चितौनी दिए देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिक्कारनेी होने के लिथे तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनोंके लिथे रहने न पाओगे। 
19 मैं आज आकाश और पृय्वी दोनोंको तुम्हारे साम्हने इस बात की साझी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिथे तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनोंजीवित रहें; 
20 इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपके रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंको देने की शपय खाई यी उस देश में तू बसा रहेगा।।