1 जो आशीर्वाद परमेश्वर के जन मूसा ने अपक्की मृत्यु से पहिले इस्राएलियोंको दिया वह यह है।।
2 उस ने कहा, यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिथे उदय हुआ; उस ने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, और लाखोंपवित्रोंके मध्य में से आया, उसके दहिने हाथ से उनके लिथे ज्वालामय विधियां निकलीं।।
3 वह निश्चय देश देश के लोगोंसे प्रेम करता है; उसके सब पवित्र लोग तेरे हाथ में हैं: वे तेरे पांवोंके पास बैठे रहते हैं,
4 मूसा ने हमें व्यवस्या दी, और याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी।।
5 जब प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूष, और इस्राएल के गोत्री एक संग होकर एकत्रित हुए, तब वह यशूरून में राजा ठहरा।।
6 रूबेन न मरे, वरन जीवित रहे, तौभी उसके यहां के मनुष्य योड़े हों।।
7 और यहूदा पर यह आशीर्वाद हुआ जो मूसा ने कहा, हे यहोवा तू यहूदा की सुन, और उसे उसके लोगोंके पास पहुंचा। वह अपके लिथे आप अपके हाथोंसे लड़ा, और तू ही उसके द्रोहियोंके विरूद्ध उसका सहाथक हो।।
8 फिर लेवी के विषय में उस ने कहा, तेरे तुम्मीम और ऊरीम तेरे भक्त के पास हैं, जिसको तू ने मस्सा में परख लिया, और जिसके साय मरीबा नाम सोते पर तेरा वादविवाद हुआ;
9 उस ने तो अपके माता पिता के विषय में कहा, कि मैं उनको नहीं जानता; और न तो उस ने अपके भाइयोंको अपना माना, और न अपके पुत्रोंको पहिचाना। क्योंकि उन्होंने तेरी बातें मानी, और वे तेरी वाचा का पालन करते हैं।।
10 वे याकूब को तेरे नियम, और इस्राएल को तेरी व्यवस्या सिखाएंगे; और तेरे आगे धूप और तेरी वेदी पर सर्वांग पशु को होमबलि करेंगे।।
11 हे यहोवा, उसकी सम्पत्ति पर आशीष दे, और उसके हाथोंकी सेवा को ग्रहण कर; उसके विरोधियोंऔर बैरियोंकी कमर पर ऐसा मार, कि वे फिर न उठ सकें।।
12 फिर उस ने बिन्यामीन के विषय में कहा, यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा; और वह दिन भर उस पर छाया करेगा, और वह उसके कन्धोंके बीच रहा करता है।।
13 फिर यूसुफ के विषय में उस ने कहा; इसका देश यहोवा से आशीष पाए अर्यात् आकाश के अनमोल पदार्य और ओस, और वह गहिरा जल जो नीचे है,
14 और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फल, और जो अनमोल पदार्य चंद्रमा के उगाए उगते हैं,
15 और प्राचीन पहाड़ोंके उत्तम पदार्य, और सनातन पहाडिय़ोंके अनमोल पदार्य,
16 और पृय्वी और जो अनमोल पदार्य उस में भरे हैं, और जो फाड़ी में रहता या उसकी प्रसन्नता। इन सभोंके विषय में यूसुफ के सिर पर, अर्यात् उसी के सिर के चांद पर जो अपके भाइयोंसे न्यारा हुआ या आशीष ही आशीष फले।।
17 वह प्रतापी है, मानो गया का पहिलौठा है, और उसके सींग बनैले बैल के से हैं; उन से वह देश देश के लोगोंको, वरन पृय्वी के छोर तक के सब मनुष्योंको ढकेलेगा; वे एप्रैम के लाखोंलाख, और मनश्शे के हजारोंहजार हैं।।
18 फिर जबूलून के विषय में उस ने कहा, हे जबूलून, तू बाहर निकलते समय, और हे इस्साकार, तू अपके डेरोंमें आनन्द करे।।
19 वे देश देश के लोगोंको पहाड़ पर बुलाएंगे; वे वहां धर्मयज्ञ करेंगे; क्योंकि वे समुद्र का धन, और बालू के छिपे हुए अनमोल पदार्य से लाभ उठाएंगे।।
20 फिर गाद के विषय में उस ने कहा, धन्य वह है जो गाद को बढ़ाता है! गाद तो सिंहनी के समान रहता है, और बांह को, वरन सिर के चांद तक को फाड़ डालता है।।
21 और उस ने पहिला अंश तो अपके लिथे चुन लिया, क्योंकि वहां रईस के योग्य भाग रखा हुआ या; तब उस ने प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूषोंके संग आकर यहोवा का ठहराया हुआ धर्म, और इस्राएल के साय होकर उसके नियम का प्रतिपालन किया।।
22 फिर दान के विषय में उस ने कहा, दान तो बाशान से कूदनेवाला सिंह का बच्चा है।।
23 फिर नप्ताली के विषय में उस ने कहा, हे नप्ताली, तू जो यहोवा की प्रसन्नता से तृप्त, और उसकी आशीष से भरपूर है, तू पच्छिम और दक्खिन के देश का अधिक्कारनेी हो।।
24 फिर आशेर के विषय में उस ने कहा, आशेर पुत्रोंके विषय में आशीष पाए; वह अपके भाइयोंमें प्रिय रहे, और अपना पांव तेल में डुबोए।।
25 तेरे जूते लोहे और पीतल के होंगे, और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी शक्ति हो।।
26 हे यशूरून, ईश्वर के तुल्य और कोई नहीं है, वह तेरी सहाथता करने को आकाश पर, और अपना प्रताप दिखाता हुआ आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है।।
27 अनादि परमेश्वर तेरा गृहधाम है, और नीचे सनातन भुजाएं हैं। वह शत्रुओं को तेरे साम्हने से निकाल देता, और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे।।
28 और इस्राएल निडर बसा रहता है, अन्न और नथे दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है; और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ा करती है।।
29 हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? वह तो तेरी सहाथता के लिथे ढाल, और तेरे प्रताप के लिथे तलवार है; तेरे शत्रु तुझे सराहेंगे, और तू उनके ऊंचे स्यानोंको रौंदेगा।।