Index

यशायाह - Chapter 18

1 हाथ, पंखोंकी फड़फड़ाहट से भरे हुए देश, तू जो कूश की नदियोंके पके है; 
2 और समुद्र पर दूतोंको नरकट की नावोंमें बैठाकर जल के मार्ग से यह कहके भेजता है, हे फुर्तीले दूतो, उस जाति के पास जाओ जिसके लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, जो आदि से अब तक डरावने हैं, जो मापके और रौंदनेवाला भी हैं, और जिनका देश नदियोंसे विभाजित किया हुआ है।। 
3 हे जगत के सब रहनेवालों, और पृय्वी के सब निवासियों, जब फंड़ा पहाड़ोंपर खड़ा किया जाए, उसे देखो! जब नरसिंगा फूंका जाए, तब सुनो! 
4 क्योंकि यहोवा ने मुझ से योंकहा है, धूप की तेज गर्मी वा कटनी के समय के ओसवाले बादल की नाईं मैं शान्त होकर निहारूंगा। 
5 क्योंकि दाख तोड़ने के समय से पहिले जब फूल फूल चुकें, और दाख के गुच्छे पकने लगें, तब वह टहनियोंको हंसुओं से काट डालेगा, और फैली हुई डालियोंको तोड़ तोड़कर अलग फेंक देगा। 
6 वे पहाड़ोंके मांसाहारी पझियोंऔर वन-पशुओं के लिथे इकट्ठे पके रहेंगे। और मांसाहारी पक्की तो उनको नोचते नोचते धूपकाल बिताएंगे, और सब भांति के वनपशु उनको खाते खाते जाड़ा काटेंगे। 
7 उस समय जिस जाति के लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, और जो आदि ही से डरावने होते आए हैं, और मापके और रौंदनेवाले हैं, और जिनका देश नदियोंसे विभाजित किया हुआ है, उस जाति से सेनाओं के यहोवा के नाम के स्यान सिय्योन पर्वत पर सेनाओं के यहोवा के पास भेंट पहुंचाई जाएगी।।