1 धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिथे उठा लिया गया कि आनेवाली आपत्ति से बच जाए,
2 वह शान्ति को पहुंचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपक्की खाट पर विश्रम करता है।।
3 परन्तु तुम, हे जादूगरती के पुत्रों, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहां निकट आओ।
4 तुम किस पर हंसी करते हो? तुम किस पर मुंह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम पाखण्डी और फूठे के वंश नहीं हो,
5 तुम, जो सब हरे वृझोंके तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालोंमें और चट्टानोंही दरारोंके बीच बाल-बच्चोंको वध करते हो?
6 नालोंके चिकने पत्यर ही तेरा भाग और अंश ठहरे; तू ने उनके लिथे तपावन दिया और अन्नबलि चढ़ाया है। क्या मैं इन बातोंसे शान्त हो जाऊं?
7 एक बड़े ऊंचे पहाड़ पर तू ने अपना बिछौना छािया है, वहीं तू बलि चढ़ाने को चढ़ गई।
8 तू ने अपक्की चिन्हानी अपके द्वार के किवाड़ और चौखट की आड़ ही में रखी; मुझे छोड़कर तू औरोंको अपके तई दिखाने के लिथे चक्की, तू ने अपक्की खाट चौड़ी की और उन से वाचा बान्ध ली, तू ने उनकी खाट को जहां देखा, पसन्द किया।
9 तू तेल लिए हुए राजा के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपके काम में लाई; अपके दूत तू ने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपके को नीचा किया।
10 तू अपक्की यात्रा की लम्बाई के कारण यक गई, तौभी तू ने न कहा कि यह व्यर्य है; तेरा बल कुछ अधिक हो गया, इसी कारण तू नहीं यकी।।
11 तू ने किस के डर से फूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया कि मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया? क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।
12 मैं आप तेरे धर्म और कर्मोंका वर्णन करूंगा, परन्तु, उन से तुझे कुछ लाभ न होगा।
13 जब तू दोहाई दे, तब जिन मूत्तिर्योंको तू ने जमा किया है वह ही तुझे छुड़ाएं ! वे तो सब की सब वायु से वरन एक ही फूंक से उड़ जाएंगी। परन्तु जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिक्कारनेी होगा, और मेरे पवित्र पर्वत को भी अधिक्कारनेी होगा।।
14 और यह कहा जाएगा, पांति बान्ध बान्धकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।
15 क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्यिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह योंकहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्र स्यान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगोंके ह्रृदय और खेदित लोगोंके मन को हषिर्त करूं।
16 मैं सदा मुकद्दमा न लड़ता रहूंगा, न सर्वदा क्रोधित रहूंगा; क्योंकि आत्मा मेरे बनाए हुए हैं और जीव मेरे साम्हने मूच्छिर्त हो जाते हैं।
17 उसके लोभ के पाप के कारण मैं ने क्रोधित होकर उसको दु:ख दिया या, और क्रोध के मारे उस से मुंह छिपाया या; परन्तु वह अपके मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया या।
18 मैं उसकी चाल देखता आया हूं, तौभी अब उसको चंगा करूंगा; मैं उसे ले चलूंगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालोंको शान्ति दूंगा।
19 मैं मुंह के फल का सृजनहार हूं; यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनोंको पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूंगा।
20 परन्तु दुष्ट तो लहराते समुुद्र के समान है जो स्यिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है।
21 दुष्टोंके लिथे शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।।