1 हाथ, अरीएल, अरीएल, हाथ उस नगर पर जिस में दाऊद छावनी किए हुए रहा! वर्ष पर वर्ष जाड़ते जाओ, उत्सव के पर्व अपके अपके समय पर मनाते जाओ।
2 तौभी मैं तो अरीएल को सकेती में डालूंगा, वहां रोना पीटना रहेगा, और वह मेरी दृष्टि में सचमुच अरीएल सा ठहरेगा।
3 और मैं चारोंओर तेरे विरूद्ध छावनी करके तुझे कोटोंसे घेर लूंगा, और तेरे विरूद्ध गढ़ भी बनाऊंगा।
4 तब तू गिराकर भूमि में डाला जाएगा, और धूल पर से बोलेगा, और तेरी बात भूमि से धीमी धीमी सुनाई देगी; तेरा बोल भूमि पर से प्रेत का सा होगा, और तू धूल से गुनगुनाकर बोलेगा।।
5 तब तेरे परदेशी बैरियोंकी भीड़ सूझ्म धूलि की नाईं, और उन भयानक लोागोंकी भीड़ भूसे की नाई उड़ाईं जाएगी।
6 और सेनाओं का यहोवा अचानक बादल गरजाता, भूमि को कम्पाता, और महाध्वनि करता, बवण्डर और आंधी चलाता, और नाश करनेवाली अग्नि भड़काता हुआ उसके पास आएगा।
7 और जातियोंकी सारी भीड़ जो अरीएल से युद्ध करेगी, ओर जितने लोग उसके और उसके गढ़ के विरूद्ध लड़ेंगे और उसको सकेती में डालेंगे, वे सब रात के देखे हुए स्वप्न के समान ठहरेंगे।
8 और जैसा कोई भूखा स्वपन में तो देखता है कि वह खा रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका पेट भूखा ही है, वा कोई प्यासा स्वपन में देखें की वह पी रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका गला सूखा जाता है और वह प्यासा मर रहा है; वैसी ही उन सब जातियोंकी भीड़ की दशा होगी जो सिय्योन पर्वत से युद्ध करेंगी।।
9 ठहर जाओ और चकित होओ! वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं, वे डगमगाते तो हैं, परन्तु मदिरा पीने से नहीं!
10 यहोवा ने तुम को भारी नींद में डाल दिया है और उस ने तुम्हारी नबीरूपी आंखोंको बन्द कर दिया है और तुम्हारे दर्शीरूपी सिरोंपर पर्दा डाला है।
11 इसलिथे सारे दर्शन तुम्हारे लिथे एक लपेटी और मुहर की हुई पुस्तक की बातोंके समान हैं, जिसे कोई पके-लिखे मनुष्य को यह कहकर दे, इसे पढ़, और वह कहे, मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि इस पर मुहर की हुई है।
12 तब वही पुस्तक अनपके को यह कहकर दी जाए, इसे पढ़, और वह कहे, मैं तो अनपढ़ हूं।।
13 और प्रभु ने कहा, थे लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्योंकी आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं।
14 इस कारण सुन, मैं इनके साय अद्भुत काम वरन अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा; तब इनके बुद्धिमानोंकी बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणोंकी प्रवीणता जाती रहेगी।।
15 हाथ उन पर जो अपक्की युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपके काम अन्धेरे में करके कहते हैं, हम को कौन देखता है? हम को कौन जानता है?
16 तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपके कर्त्ता के विषय कहे कि उस ने मुझे नहीं बनाया, वा रची हुई वस्तु अपके रचनेवाले के विषय कहे, कि वह कुछ समझ नहीं रखता?
17 क्या अब योड़े ही दिनोंके बीतने पर लबानोन फिर फलदाई बारी न बन जाएगा, और फलदाई बारी जंगल न गिनी जएगी?
18 उस समय बहिरे पुस्तक की बातें सुनने लेगेंगे, और अन्धे जिन्हें अब कुछ नहीं सूफता, वे देखने लेगेंगे।
19 नम्र लोग यहोवा के कारण फिर आनन्दित होंगे, और दरिद्र मनुष्य इस्राएल के पवित्र के कारण मगन होंगे।
20 क्योंकि उपद्रवी फिर न रहेंगे और ठट्ठा करनेवालोंका अन्त होगा, और जो अनर्य करने के लिथे जागते रहते हैं, जो मनुष्योंको वचन में फंसाते हैं,
21 और जो सभा में उलहना देते उनके लिथे फंदा लगाते, और धर्म को व्यर्य बात के द्वारा बिगाड़ देते हैं, वे सब मिट जाएंगे।।
22 इस कारण इब्राहीम का छुड़ानेवाला यहोवा, याकूब के घराने के विषय योंकहता है, याकूब को फिर लज्जित होना न पकेगा, उसका मुख फिर नीचा न होगा।
23 क्योंकि जब उसके सन्तान मेरा काम देखेंगे, जो मैं उनके बीच में करूंगा, तब वे मेरे नाम को पवित्र मानेंगे, और इस्राएल के परमेश्वर को अति भय मानेंगे।
24 उस समय जिनका मन भटका हो वे बुद्धि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वह शिझा ग्रहण करेंगे।।