1 क्या ही धन्य है वह पुरूष जो दुष्टोंकी युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियोंके मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालोंकी मण्डली में बैठता है!
2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है।
3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियोंके किनारे लगाया गया है। और अपक्की ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिथे जो कुछ वह पुरूष करे वह सफल होता है।।
4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है।
5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियोंकी मण्डली में ठहरेंगे;
6 क्योंकि यहोवा धर्मियोंका मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टोंका मार्ग नाश हो जाएगा।।