1 हे यहोवा जो मेरे साथ मुक मा लड़ते हैं, उनके साथ तू भी मुक मा लड़; जो मुझ से युद्व करते हैं, उन से तू युद्व कर।
2 ढाल और भाला लेकर मेरी सहाथता करने को खड़ा हो।
3 बर्छी को खींच और मेरा पीछा करनेवालोंके साम्हने आकर उनको रोक; और मुझ से कह, कि मैं तेरा उद्वार हूं।।
4 जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं वे लज्जित और निरादर हों! जो मेरी हाति की कल्पना करते हैं, वह पीछे हटाए जाएं और उनका मुंह काला हो!
5 वे वायु से उड़ जानेवाली भूसी के समान हों, और यहोवा का दूत उन्हें हांकता जाए!
6 उनका मार्ग अन्धिक्कारनेा और फिसलाहा हो, और यहोवा का दूत उनको खदेड़ता जाए।।
7 क्योंकि अकारण उन्होंने मेरे लिथे अपना जाल गड़हे में बिछाया; अकारण ही उन्होंने मेरा प्राण लेने के लिथे गड़हा खोदा है।
8 अचानक उन पर विपत्ति आ पके! और जो जाल उन्होंने बिछाया है उसी में वे आप ही फंसे; और उसी विपत्ति में वे आप ही पकें!
9 परन्तु मैं यहोवा के कारण अपके मन में मगन होऊंगा, मैं उसके किए हुए उद्वार से हर्षित होऊंगा।
10 मेरी हड्डी हड्डी कहेंगी, हे यहोवा तेरे तुल्य कौन है, जो दी को बड़े बड़े बलवन्तोंसे बचाता है, और लुटेरोंसे दीन दरिद्र लोगोंकी रक्षा करता है?
11 झूठे साक्षी खड़े होते हैं; और जो बात मैं नहीं जानता, वही मुझ से पूछते हैं।
12 वे मुझ से भलाई के बदले बुराई करते हैं; यहां तक कि मेरा प्राण ऊब जाता है।
13 जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहिने रहा, और उपवास कर करके दु:ख उठाता रहा; और मेरी प्रार्थना का फल मेरी गोद में लौट आया।
14 मैं ऐसा भाव रखता था कि मानो वे मेरे संगी वा भाई हैं; जैसा कोई माता के लिथे विलाप करता हो, वैसा ही मैं ने शोक का पहिरावा पहिने हुए सिर झुकाकर शोक किया।।
15 परन्तु जब मैं लंगड़ाने लगा तब वे लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था वे मेरे विरूद्व इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे;
16 उन पाखण्डी भांड़ोंकी नाई जो पेट के लिथे उपहास करते हैं, वे भी मुझ पर दांत पीसते हैं।।
17 हे प्रभु तू कब तक देखता रहेगा? इस विपत्ति से, जिस में उन्होंने मुझे डाला है मुझ को छुड़ा! जवान सिक्कों मेरे प्राण को बचा ले!
18 मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा; बहुतेरे लोगोंके बीच में तेरी स्तुति करूंगा।।
19 मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरूद्व आनन्द न करने पाएं, जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे आपस में नैन से सैन न करने पांए।
20 क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, उनके विरूद्व छल की कल्पनाएं करते हैं।
21 और उन्होंने मेरे विरूद्व मुंह पसारके कहा; आहा, आहा, हम ने अपक्की आंखोंसे देखा है!
22 हे यहोवा, तू ने तो देखा है; चुप न रह! हे प्रभु, मुझ से दूर न रह!
23 उठ, मेरे न्याय के लिथे जाग, हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे प्रभु, मेरे मुक मा निपटाने के लिथे आ!
24 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अपके धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; ओश्र उन्हें मेरे विरूद्व आनन्द करने न दे!
25 वे मन में न कहने पाएं, कि आहा! हमारी तो इच्छा पूरी हुई! वह यह न कहें कि हम उसे निगल गए हैं।।
26 जो मेरी हाति से आनन्दित होते हैं उनके मुंह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरूद्ध बड़ाई मारते हैं वह लज्जा और अनादर से ढ़ंप जाएं!
27 जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं, वह जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपके दास के कुशल से प्रसन्न होता है!
28 तब मेरे मुंह से तेरे धर्म की चर्चा होगी, और दिन भर तेरी स्तुति निकलेगी।।