1 हे वीर, तू बुराई करने पर क्योंघमण्ड करता है? ईश्वर की करूणा तो अनन्त है।
2 तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है; सारे धरे हुए अस्तुरे की नाईं वह छल का काम करती है।
3 तू भलाई से बढ़कर बुराई में और अधर्म की बात से बढ़कर झूठ से प्रीति रखता है।
4 हे छली जीभ तू सब विनाश करनेवाली बातोंसे प्रसन्न रहती है।।
5 हे ईश्वर तुझे सदा के लिथे नाश कर देगा; वह तुझे पकड़कर तेरे डेरे से निकाल देगा; और जीवतोंके लोक में तुझे उखाड़ डालेगा।
6 तब धर्मी लोग इस घटना को देखकर डर जाएंगे, और यह कहकर उस पर हंसेंगे, कि
7 देखो, यह वही पुरूष है जिस ने परमेश्वर को अपक्की शरण नहीं माना, परन्तु अपके धन की बहुतायत पर भरोसा रखता था, और अपके को दुष्टता में दृढ़ करता रहा!
8 परन्तु मैं तो परमेश्वर के भवन में हरे जलपाई के वृक्ष के समान हूं। मैं ने परमेश्वर की करूणा पर सदा सर्वदा के लिथे भरोसा रखा है।
9 मैं तेरा धन्यवाद सर्वदा करता रहूंगा, क्योंकि तू ही ने यह काम किया है। मैं तेरे ही नाम की बाट जोहता रहूंगा, क्योंकि यह तेरे पवित्रा भक्तोंके साम्हने उत्तम है।।