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भजन संहिता - Chapter 144

1 धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह मेरे हाथोंको लड़ने, और युद्ध करने के लिथे तैयार करता है। 
2 वह मेरे लिथे करूणानिधान और गढ़, ऊंचा स्थान और छुड़ानेवाला है, वह मेरी ढ़ाल और शरणस्थान है, जो मेरी प्रजा को मेरे वश में कर देता है।। 
3 हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, या आदमी क्या है, कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है? 
4 मनुष्य तो सांस के समान है; उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं।। 
5 हे यहोवा, अपके स्वर्ग को नीचा करके उतर आ! पहाड़ोंको छू तब उन से धुंआं उठेंगा! 
6 बिजली कड़काकर उनके तितर बितर कर दे, अपके तीर चलाकर उनको घबरा दे! 
7 अपके हाथ ऊपर से बढ़ाकर मुझे महासागर से उबार, अर्थात् परदेशियोंके वश से छुड़ा। 
8 उनके मुंह से तो व्यर्थ बातें निकलती हैं, और उनके दहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं।। 
9 हे परमेश्वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊंगा; मैं दस तारवाली सारंगी बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 
10 तू राजाओं का उद्धार करता है, और अपके दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है। 
11 तू मुझ को उबार और परदेशियोंके वश से छुड़ा ले, जिन के मुंह से व्यर्थ बातें निकलती हैं, और जिनका दहिना हाथ झूठ का दहिना हाथ है।। 
12 जब हमारे बेटे जवानी के समय पौधोंकी नाईं बढ़े हुए हों, और हमारी बेटियां उन कोनेवाले पत्थरोंके समान हों, जो मन्दिर के पत्थरोंकी नाईं बनाए जाएं; 
13 जब हमारे खत्ते भरे रहें, और उन में भांति भांति का अन्न धरा जाए, और हमारी भेड़- बकरियोंहमारे मैदानोंमें हजारोंहजार बच्चे जनें; 
14 जब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; जब हमें न विध्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, और न हमारे चौकोंमें रोना- पीटना हो, 
15 तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है!