1 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्रा नाम को धन्य कहे!
2 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना।
3 वही तो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता, और तेरे सब रोगोंको चंगा करता है,
4 वही तो तेरे प्राण को नाश होने से बचा लेता है, और तेरे सिर पर करूणा और दया का मुकुट बान्धता है,
5 वही तो तेरी लालसा को उत्तम पदार्थोंसे तृप्त करता है, जिस से तेरी जवानी उकाब की नाईं नई हो जाती है।।
6 यहोवा सब पिसे हुओं के लिथे धर्म और न्याय के काम करता है।
7 उस ने मूसा को अपक्की गति, और इस्राएलियोंपर अपके काम प्रगट किए।
8 यहोवा दयालु और अनुग्रहकरी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है।
9 वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिथे भड़का रहेगा।
10 उस ने हमारे पापोंके अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामोंके अनुसार हम को बदला दिया है।
11 जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करूणा उसके डरवैयोंके ऊपर प्रबल है।
12 उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधोंको हम से उतनी ही दूर कर दिया है।
13 जैसे पिता अपके बालकोंपर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपके डरवैयोंपर दया करता है।
14 क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है।।
15 मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल की नाईं फूलता है,
16 जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपके स्थान में फिर मिलता है।
17 परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयोंपर युग युग, और उसका धर्म उनके नाती- पोतोंपर भी प्रगट होता रहता है,
18 अर्थात् उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते और उसके उपकेशोंको स्मरण करके उन पर चलते हैं।।
19 यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है।
20 हे यहोवा के दूतों, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो!
21 हे यहोवा की सारी सेनाओं, हे उसके टहलुओं, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो!
22 हे यहोवा की सारी सृष्टि, उसके राज्य के सब स्थानोंमें उसको धन्य कहो। हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!