1 मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; तुम क्योंकि मेरे प्राण से कहते हो कि पक्षी की नाई अपके पहाड़ पर उड़ जा?
2 क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, और अपना तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मनवालोंपर अन्धिक्कारने में तीर चलाएं।
3 यदि नेवें ढ़ा दी जाएं तो धर्मी क्या कर सकता है?
4 परमेश्वर अपके पवित्रा भवन में है; परमेश्वर का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आंखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जांचक्की हैं।
5 यहोवा धर्मीं को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपक्की आत्मा में घृणा करता है।
6 वह दुष्टोंपर फन्दे बरसाएगा; आग और गन्धक और प्रचण्ड लूह उनके कटोरोंमें बांट दी जाएंगी।
7 क्योंकि यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामोंसे प्रसन्न रहता है; धर्मीजन उसका दर्शन पाएंगे।।